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प्रथम परिच्छेद.
(ए) समवायांग राजप्रश्नीय प्रमुख शास्त्रानुसार लखेल बे. अन्यथा जिनसह स्र नामना ग्रंथमां एक हजार श्रावनाम अन्वयार्थ सहित वर्णवेल बे. सर्वनाम व्युत्पत्ति सहित अर्हत परमेश्वरनां बे. “ अर्हत पद " अनादि अनंत परंतु ते पदना धारण करनारा जीव अनंत अतीत कालमां घई गया. कारण के एकेक उत्सर्पिषि अवसर्पिणि कालमांजारत वर्षमां चो विश चोवीश जीव त पढ़ने धारण करी सिद्ध पदने प्राप्त थयेला बे.
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या वर्त्तमान व्यवसर्पिषिश्री आगलनी उत्सप्पिणिमां जे जीवो श्रर्द्धत पदने धारण करनारा थई गया तेमनां नाम (१) केवल ज्ञानी (2) नि र्वाणी (३) सागर (४) महायश (५) विमलनाथ ( ६ ( सर्वानुभूति (9) श्री धर (0) दत्त (v) दामोदर (१०) सुतेज (११) स्वामी ( १२ ) मुनिसुव्रत (१३) सुमति (१४) शिवगति, (१५) अस्ताग (१६) नेमीश्वर (१७) अनि ल (१८) यशोधर (१) कृतार्थ (२०) जिनेश्वर (२१) शुद्धमति ( 22 ) शिवकर (२३) स्पंदन (२४) संप्रति.
वर्तमान चोवीश तनां नाम. (१) श्रीकृषननाथ ( 2 ) श्री अजित नाथ ( ३ ) श्री संजवनाथ (४) श्री अभिनंदन नाथ ( ५ ) श्री सुमतिनाथ (६) श्री पद्मन (9) श्री सुपार्श्वनाथ ( 5 ) श्री चंद्रप्रन (ए) श्री सुविधि नाथ बीजुं नाम पुष्पदंत (१०) श्री शीतलनाथ ( ११ ) श्रीश्रेयांसनाथ ( १२ ) श्री वासुपूज्य स्वामी (१३) श्री विमल नाथ (१४) श्री अनंतनाथ ( 24 ) श्री धर्मनाथ (१६) श्री शांतिनाथ (१७) श्री कुंथुनाथ (१०) श्री धरनाथ (१) श्रीमल्लिनाथ ( २० ) श्री मुनिसुव्रत स्वामी (२१) श्री नमिनाथ (२२) श्री अरिष्टनेमि (२३) श्री पार्श्वनाथ (२४) श्री महावीर.
वर्त्तमान चोवीश तीर्थंकर जगवंतनां नाम शा शा कारणथी थयां ते तथा नामोना सामान्यार्थ जे सर्व तीर्थंकरोमां पामी शकाय तथा विशे षार्थ जे ते एक तीर्थंकरना नामने निमित्तें बे ते लखीयें बीयें.
"षति गछति परमपदमिति रुषनः" जाय जे परमपदने ते कृषन था अर्थ सर्व तीर्थंकरमां व्यापक बे तथा " उर्वोर्वृषनलांबनमभूद्द्भगवतो ज नन्या चतुर्द्दशानां स्वप्नानामादौ वृषनोदृष्टः तेन षनः " जगवानना बने साथलोमा बलदनुं लांबन हतुं अथवा जगवंतनी माता मरुदेवीए चौद स्वप्नीयादिमां बलदनुं स्वप्न दीव्रं ते कारणची रुषन एवं नाम दीधुं.
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