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(४०) जैनतत्त्वादर्श. लश श्रेणिबंध स्थापन करे, उपर सुंदर वस्त्र ढांके, पढी सुंदर केशर, चं. दन, धूपथी हाथ पवित्र करे, मस्तकमां श्रावक तिलक करे, हस्तउपर चंदननुं कंकण करे, हाथ धूपवासित करे. पनी स्नात्र करनारा श्रावक श्रेणिबंध उन्ना रही या प्रमाणे कुसुमांजलिनो पाठ उंचरे. " सयवंत कुंद मालश्, बहुविद कुसुमार पंचवन्नाई ॥ जिणनाह ह्रवण काले, दि. तिसुरा कुसुमांजलि हबा ॥१॥ एम उचरी जिनराजना अंग उपर पुब्प चढावे. वली “ गंधायहिय महुयर, मणहर जंकार सद्द संगीथ ॥ जिणचलणो वरिमुका, हर तुह्म कुसुमांजलि कुरियं ॥ श्री गाथा कही जिनराजना चरणकमल उपर एक श्रावक कुसुमांजलि चढावे सर्वकुसुमांजलिना पाठमां तिलक करवां, चंदन, पुष्पपत्रादि धूपवासित करी एकत्र चढाववां. ए प्रमाणे सर्वकुसुमांजलि करी रह्या पड़ी, जे जिनेश्वर नगवाननी स्थापना करी होय, तेमना जन्माभिषेक कलशनो अत्यंत मधुरखरथी पाठ कहे. पड़ी घी, शेलडीरस, उध, दही, सुगंधजल इत्यादिथी करी राखेला पंचामृतथी जिनराजने स्नान करे, स्नान करतां धूप उखेवे, जिनराजनुं शरीर पुष्परहित न करे, यदाहु दिवेताल श्री. शांतिसूरयाचार्याः॥ ज्यांसुधी स्नात्रसमाप्ति न थाय, त्यां सुधी नगवाननुं मस्तक शून्य न राख. निरंतर जलधारा अने उत्तमपुष्पोनी - ष्टि जिनराज पर करे, अने स्नान करती वखते चामर, संगीत, तूर्यादि आडंबर खशक्ति अनुसार करे.
स्नात्र कर्यापली सर्वश्रावके निर्मल जलधारा देवी. धारा देती वखत आ प्रमाणे पाठ उच्चारे. ॥ अनिषेक तोयधारा, धारेव ध्यानमंडलायस्य ॥ नवनवननित्तिनागान्, नूयोऽपि जिनत्तु नागवती ॥ १॥ पड़ी जिनराजनुं अंग लूही, विलेपन चंदनथी करे, पुष्पादि चढावे, धूप उखेवे, उत्तम नैवेद्य तथा फल चडावे. पठी ज्ञानादि त्रणे सहित त्रण लोकना स्वामि पासे त्रण पुंज स्नात्रकार करे, प्रथम वडिल श्रावक त्रण पुंज करे, पनी नानो श्रावक तथा श्राविका अनुक्रमें करे, श्री जिनजन्ममहोत्सवमां पण स्नात्र करती वखते प्रथम अच्युत इंज, पोताना देवतासंयुक्त स्नात्र करे बे, पडी अनुक्रमें बीजा इंज स्नात्र करे . स्नात्रजल पोताना मस्तक उपर श्रावक प्रक्षेप करे तो दोष नथी. ॥ यमुक्त