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________________ अष्टम परिबेद. आवी जाय त्यारे शुद्ध प्राशुक थायबे, परंतु एक उकाला अथवा बे उकालानुं पाणी तो मिश्र उदक कहेवाय , ते पाणीने अचित्त जाणी पीये, तथा सचित्त वस्तुने अचित्त थवामां विलंब होय, उतांपि तेने अचित्त जाणी खाय तो प्रथम अतिचार लागे. २ बीजुं सचित्त प्रतिबझाहार अतिचार. जेने सचित्त वस्तुनो नियम बे, ते तत्काल खेरनी गांउथी गुंदर उखेडीने खाय, तेमां गुंदर तो अचित्त डे, परंतु सचित्तनी साये मलेलो हतो, तेथी दोष लागे . वली पाकी केरी चूसे, तथा बोर, रायणना समूहने खाय, अने मनमा एम जाणे के हुं तो अचित्त खाउनु, सचित्त गोठली, उलीयाने फेंकी दश्श, तेमां शुं दोष ? एवा विचारथी खाय तो, बीजो अतिचार लागे. ३त्रीजो अपक्वाहार अतिचार.चाल्या वगरनो लोट, तथा जेने अग्नि संस्कार न करवामां आव्यो होय, एवो काचो लोट फाके; कारण के श्री सिद्धांतमां कडं बे के, आटो दव्या पली, चाल्या विना केटलाएक दिवस मिश्र रहे. श्रावण, जादरवा मासमां श्रणचाल्यो आटो पीस्यापबी, पांच दिवस मिश्र रहे, आसो, कारतक मासमा चार दिवस मिश्र रहे बे, मागशर, पोष मासमांत्रण दिवस मिश्र रहे , माघ, फागण मासमां पांच पदोर मिश्र रहेने, चैत्र, वैशाख मासमां चार पहोर मिश्र रहे, अने जेठ असाड मासमां त्रण पहोर मिश्र रहेबे, पनी अचित्त थर जाय, तेथी मिश्र खायतो, त्रीजो अतिचार लागे. ___४ चोथा उपक्वाहार अतिचार, कांश्क काचा तथा कांश्क पाका एवा सर्व जातिना उला, लंबी, पोंक, जुवार, बाजरा,घ प्रमुखना लीला पोंक बीजथी जरेला, ते अग्निसंस्कार करतां जेना केटलाएक दाणा अचित्त थाय, तथा केटलाएक दाणा सचित्त रहे, तेने अचित्त जाणी खाय तो, चोथो अतिचार लागे. ___५ पांचमो तुऔषधि लक्षण अतिचार. तुब अर्थात् असार जे खावाथी तृप्ति न थाय, परंतु खावामां पाप बहुज लागतुं होय, जेमके चणानां फूलखाय, बोरना उलियामांथी गरज काढी खाय, वाल, चणा, मग, चोलानी फली खाय, श्र वस्तु खावामां प्रसंगदूषणो बहुज लागे ,कारण,
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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