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अष्टम परिछेद. (३५१) थाय डे, त्यारे ते माखणमां सूक्ष्म जीवो तेज वर्णना उत्पन्न थर जाय बे, ते कारणथी माखण त्यागवा योग्य ले. जैनलोकोए बाशथी माखण बहार काढीने, तत्काल अग्निसंयोगथी, बनावीने, गलीने, पनी खावू जोश्ए; कारण के ए रीतिथी शास्त्रोक्त जीव तेमां उत्पन्न थता नथी ते. नी हिंसा थती नथी, वनी माखी, कंसारी, मछरादि जीवोना अवयव प्रमुख पण, घी गलवाथी निकली जाय ; वली माखण कामनी पण वृद्धि करे , तेथी मनमां खोटा विकल्प उत्पन्न थाय बे; तेथी श्रावकें माखण न खावू जोए. वली एक जीवनो नाश करवाथी ज्यारे पाप थाय बे, त्यारे पूर्वोक्त रीतिथी माखण तो जीवोनुंज पिंड थई जाय . तेथी माखण खावाथी पापनी गणतरी केम थर शके ?
प्रश्नः- माखणमां बे घडी पड़ी कोईपण जीव उत्पन्न थयेल अमे दे: खता नथी, तो केवीरीतें तमारूं कहे सत्य मानी शकीए ?
उत्तरः- जेठ जैनमतना शास्त्रोने सत्य मानशे, ते तो शास्त्रकारना कथनने सत्यज मानशे, अने जे जैननां शास्त्रोने सत्य मानता नयी ते कदापि था कथन सत्यमानो अथवा न मानो, परंतु अमे तो श्रा वातमां बागम प्रमाण विना बीजुं प्रमाण दई शकता नथी. तात्पर्य ए के के वस्तु बे प्रकारे सिक थाय ; एक हेतुगम्य, बीजी आगमगम्य माखणहिदलादिमां जे जीव उत्पन्न थाय , ते हेतुगम्य नथी, परंतु आगमगम्य . ते कारणथी जे पागम सर्वज्ञ जिन अस्त वीतरागें कथन करेल , ते सत्य होवाथी मानवु जोईए. जो कोश पुरुष, कोपण शास्त्रने सत्य नहि मानतां, आंखथी देखेली वस्तुनेज मानशे, तो तेनाथी वर्ग नरकादि, जे अदृष्ट बे, ते पण मानी शकाशे नहि, वली परमेश्वर सातमा अथवा चौदमा असमान उपर , तथा जीव, पुण्य, पाप करवाथी खर्ग, नरकमां जाय , था पण नहिज मानी शकाशे. इत्यादि अनेक बाबतो तेनाथी मानी शकाशे नहि. जो बीजी बाबतो, इजियोने अगम्य, मानशे तो, श्रागम प्रमाण पण मानतुं पडशे, कारण के सर्व वस्तु अमारी दृष्टिमां श्रावि शकती नथी.
ए नवमुं अजय मधु अर्थात् मध अनेक जीवोनो घात थवाथी उत्पन्न थाय बे. श्रा परलोकविरुद्ध दोष , अने मुखनी लालना जे