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________________ (३१६) जैनत्तत्त्वादर्श. के हुं जे धर्म करूं तुं, तेनुं फल मने शुं मलशे ? अर्थात् धर्मनुं फल मने मलशे के नहि ? वली जेट धर्म करता नथी, ते सुखी बे, घने हुं धर्म करूं, बतांपि दुःखी हुं, ते कारणथी कोण जाणे धर्मनुं फल दशे के नहि ? तथा साधुनां मलिन शरीर तथा मलिन वस्त्र देखीने मनमां डुंगंबा करे के साधु सारा नथी, कारण के तेमनुं शरीर गंडु बे तथा तेमनां वस्त्र पण गंदां बे. ते संसारथी केवी रीतें तरी शकशे, जो ते उष्णजलथी स्नान करे तो तेथी कयुं महाव्रत तेनुं जंग थाय बे ? उत्तरः- जो धर्मनुं फल न होय तो, संसारनी विचित्रता कदापि न होय, ते कारणथी धर्मनुं फल अवश्यमेव बे. वली साधु जे मलिन वस्त्र राखे बे, तेनुं कारण ए बे के सुंदरवस्त्र राखवाथी मन श्रृंगार रसने चहाय बे. वली स्त्रियो पण सुंदर वस्त्रवालाउने देखी ने तेजनी साथे जोग जोगवनी इछा करे बे. ते कारणथी शियल पालवानी इछा राखनारा साधुए शृंगार करवो वास्तविक नथी. वली स्नान, कामनुं प्रथम अंग बे, तेथी साधुउने उचित नथी, अने कोइ कारण प्रसंगें साधु हाथ, पगादि धोवे तो ते कां दूषण नथी, वली साधुर्जने पोतानां शरीर उपर ममत्व पण नथी, छाने शुचिमात्र स्नान तो साधु करे बे. परंतु शरीरना सुखवास्ते. तथा शरीरने चमकाववा वास्ते स्नान करता नयी, कारण के जैनिउनी एवी श्रद्धाज नथी के स्नान करवायी पाप दूर थ जाय बे. जलस्नानथी शरीरनो मेल दूर थाय बे, शरीरनो ताप मटी जाय बे, अने आलस दूर थाय बे, परंतु पाप तो दूर यतुं नथी, जो जल स्नानथी पाप दूर तुं होय तो, अनायासें सर्व जीवनी मुक्ति थर जाय, कारण के एवं कोइ नथी जे जल स्नान करतुं नथी. वली साधुने मेला समजवा, ते पण मोटी मूर्खता डे, कारण के शरीरें मेल होवाथी श्रात्मा मलिन यतो नयी श्रात्मातो मात्र पापकरवाथीज मलिन थाय बे. वली जगत् व्यवहारमां मेलापणुं स्त्री साथै संजोग करवाथी, तेमज कोई मलिन वस्तुनो स्पर्श करवायी मानवामां आवे छे, छाने साधुतोते सर्व वस्तुना त्यागी बे, तेथ मेला कहेवाय नहि, बलके साधु ने धन्यवाद देवो जोइए, केमके ताप पडे बे, लू वाय बे, पसीनो वहे बे, बतांपि साधु उघाडा पगे तेमज खुले मस्तके विहार करे बे, रात्रियें मात्र बाजेला मकानमां सुवेडे,
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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