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जैनतत्त्वादर्श, नथी, परंतु जघन्य, मध्यम उत्कृष्टरूप देश विरति ते यश् शकेले. जघन्य देशविरतिपणामां आकुट्टि स्थूल हिंसा प्रमुखनो त्याग, मद्यमांसादि परिहार, तेमज पंचपरमेष्ठि नमस्कार स्मरणादि . यदाह ॥आउटि थूल हिंसा, मधमंसा चाय ॥ जहन्नो सावर्ड होश, जो नमुक्कार धार ॥१॥ तथा मध्यम देशविरति अनुमादि न्यायसंपन्न वैजवादि धर्मयोग्यताना गुणोसहित, तथा गृहस्थ उचित षट्कर्मधर्ममां तत्पर, छादश व्रतना पालक, सदाचारवान्, एवा होय ते मध्यम श्रावक जाणवा. तथा उत्कृष्ट देश विरति सचित्ताहारना त्यागी होय, प्रतिदिन एकासणुं करे, ब्रह्मचारी होय, महानत अंगीकार करवानी श्वावाला होय, अने गृहस्थनो धंधो त्यागेलो होय ते उत्तम श्रावक जाणवा, आ त्रण प्रकारनी विरतिमांथी एकपण प्रकारनी विरति होय ते श्रावक कहेवाय . देशविरति गुणस्थानकनी उत्कृष्टी स्थिति देशजणी कोटिपूर्वनी बे.
हवे देशविरतिपणामां ध्याननो संलव कहीयें लियें. आ गुणस्थानक वाला जीवोमां १ अनिष्टयोगात, ५ श्ष्टयोगात, ३ रोगचिंतात, ४ अग्रशौचात, आ चार पादरूप आर्तध्यान, तथा १ हिंसानंदरौद्ध, २ मृषानंद रौद्ध, ३ चौर्यानंदरौआ, ४ संरक्षणानंदरौद्ध, आ चार पादरूप रौनध्यान, मंद होय . जेम जेम देशविरतिपणुं विशेष यतुं जायजे. तेम तेम आर्त
रौषध्यान मंद मंदतर थतुं जाय . वली जेम जेम देश विरतिपणुं अ. धिक यतुं जाय , तेम तेम धर्मध्यान अधिक अधिक थतुं जाय , परंतु मध्यमरूपेंज रहे; उत्कृष्ट धर्मध्यान देशविरतिपणामां होतुं नथी. जो उत्कृष्ट धर्मध्यान थ जाय तो, सर्व विरतिपणुं यश् जाय. प्रश्नः-पांचमा गुनस्थानमा धर्मध्यान केवी तरेहनुं होय ?
उत्तरः- गृहस्थधर्म उचित षट्कर्म, एकादश प्रतिमा, तथा श्रावक व्रतपालनरूप होय. षट्कर्म आ प्रमाणे . १ तीर्थंकर नगवंत वीतराग सर्वज्ञनी प्रतिमाछारा पूजा करवी, ५ गुरुनी सेवा करवी, ३ खाध्याय, ४ संयम (इंखियदमन) ५ तप, ६ दान, यदाह ॥ देवपूजा, गुरूपास्तिः, खाध्यायः संयमस्तपः ॥ दानं चेति गृहस्थानां, षट्कर्माणि दिने दिने ॥१॥ तथा प्रतिमा ते अनिग्रह विशेषने कहेवामां आवे जे ॥ गाथा ॥ दसण वयसामाश्य, पोसहपडिमा अबंज सचित्ते ॥ आरंजपेस उदिर, व