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जैनतत्त्वादर्श. जे बाष्प थाय बे, ते उष्ण स्पर्शवाली वस्तुथी थाय . शीतजलथी सेचनकरेला शीतकालमां मनुष्य शरीरनी बाष्पनी जेम. वली उकरडामां कूडा कचवरमांथी धूआ (बाष्प) निकले बे, त्यां पण अमे पृथ्वीकायना जीव मानियें बियें या हेतुथी जल सजीव सिद्ध थाय ने.
प्रश्नः- तेजस्कायमां जीव केवीरीतें सिक थाय ?
उत्तरपदः- जेम रात्रिमा खद्योत (आगीश्रा कीडा) नुं शरीर जीवशक्तिथी बनेबुं प्रकाशवान् बे, तेम अंगारा दिपण प्रकाशमान होवाथी सचेतन . तथा जेम ज्वरनी उष्मा जीवना प्रयोग विना अर्थात् श्रस्तित्व विना होती नथी, तेम अग्निमां पण जीवविना गरमी थती नथी. जुर्म के मृतकशरीरमां ज्वर कदापि होतो नथी. एवा अन्वयव्यतिरेकथी अनि सचेतन जाणवो. वली प्रयोग आ बे, आत्माना संयोगथी प्रगट थयो जे अंगाराप्रमुखने प्रकाश परिणाम, शरीरस्थ होवाश्री खद्योत शरीर परिणामवत्. तथा आत्मा संयोगपूर्वक शरीरस्थ होवाथी ज्वर उष्मवत् अंगाराप्रजुखमां उष्णता जे. एमपण न कदेबु के सूर्यनी उष्मा साथे अनेकांतिक हेतु . सूर्यमां जे उष्मा ले ते पण आत्मसंयोग पूर्वकज अमे मानियें बियें. तथा अग्नि सचेतन , कारण के यथायोग्य आहार करवाश्री वृद्धि आदि विकार मालम पडवाश्री पुरुषना शरीरनी जेम. इत्यादि लक्षणोथी अनि सचेतन .
प्रश्नः- वायुकाय (पवन ) मां जीवसत्ता केवी रीतें सिद्ध करो डो?
उत्तरपदः- जेम देवतानां शरीर शक्ति प्रजावथी, तेमज मनुष्योनां शरीर अंजनादि विद्यामंत्रना प्रजावथी, अदृश्य थजवाथी नेत्रथी देखातां नथी, तोपण विद्यमान चेतनावालां, तेम वायुकाय सूक्ष्म परिणाम होवाथी, परमाणुनी जेम, नेत्रथी देखाता नथी तोपण विद्यमान चेतनावाला . तेमज अग्निथी दग्ध पाषाणखंडगत अग्निवत्ः प्रयोग श्रा . बीजाऊनी प्रेरणाविना, नियमपूर्वक तिर्यक् गति होवाथी वायु चेतनावान् . गवाश्वादिवत् तिर्यक् गतिना नियमथी; परमाणुनी साथे व्यभिचार नश्री. वली शस्त्रथी अनुपहत होवाथी वायु सचेतन डे. । वनस्पतिकायमां तो प्रत्यक्ष प्रमाणथी जीव सिकज बे. ते कारणथी अहिंयां तेनो विस्तार को नथी. सर्वज्ञना कथन करेलां श्रागमपण पृ.