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चतुर्थ परिछेद. (१३) करी, तो तो एक मुखथी युगपत् अनुग्रह, निग्रह वाक्यना उच्चारणमांज व्यनिचारनो प्रसंग आवशे. __ वली मुख देहनो नवमो नाग बे, ज्यारे देवतानां मुखज दाहात्मक , त्यारे एकेक देवतानुं शरीर दाहात्मक होवाथी त्रणे जुवन जस्मीनूत थजवां जोश्य ? आटली चर्चाथी सयुं. __वली कारीरी यज्ञादिमां वृष्टयादि फलनो जे अव्यजिचार , ते फलमां आहुतिथी संतुष्ट थयेला देवतानो अनुग्रह जे तमे कहोबो ते पण अनेकांतिक , कोश्स्थलें व्यभिचार पण देखवामां आवे बे. ज्या व्यभिचार नथी, त्यां पण आहुतिनुं जोजन करवाथी अनुग्रह नथी, परंतु ते देवताविशेष, अतिशय ज्ञानी बे, पोताने उद्देशीने करेला पूजा उपचारने देखीने, पोताना स्थानमांज स्थित थया थका, पूजा करनारउपर प्रसन्न थईने, तेनुं कार्य पोतानी श्वाथी करी थापे . अनुपयोगथी नहि जाणता, अथवा जाणता थका पण, पूजकना अनाग्यश्री कार्य नथी पण करता ? कारण के अव्य, क्षेत्र, काल जावादिनी सहायताथी कार्य, थनजरे पडे अने ते जे पूजा उपचार , ते नि:केवल पशुउनाज मारवाथी थई शके ने एम नथी, परंतु बीजी रीते पण यश् शकेबे, तो पठी जेनुं फल एक पापरूपज ने एवी सौनिक ( कसाइ) वृत्ति करवाथी शुं लान ?
वली जे बगल अर्थात् बकरानुं मांस होमवाश्री परराज्य वश करनारी सिध्यादि देवीने संतुष्ट करवानुं जे अनुमान बे, तेमां शुं आश्चर्य ? केटलाएक हुम देवता तेवीज रीतें संतुष्ट थाय बे, त्यां पण ते उष्ट देवता पोतानी पूजा देखीने राजी थाय ने, परंतु मलिन मांस खावाथी राजी थता नथी. जो कदी होम करेली वस्तुने खाता होय तो निंबपत्र कडवांतेल, धारनाल (बाकला ) धूमांश आदि होम करेखां अव्य पण तेनुं जोजन थई जशे. वाह ! शुं तमारा देवता सुंदर नोजन करे ?
वली अतिथिनी परोणागत सुंदर संस्कार करेला पक्वान्न आदिथी पण थई शके थे, तो पड़ी ते ने वास्ते महोद, महाश्रजादिनी कल्पना करवी, ते निःकेवल तमारी निर्विवेकता बतावी आपे जे.
वली श्रासादि करवाथी पितरोनी जे प्रीति मानो बो, ते पण अने
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