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________________ चतुर्थ परिजेद. (२४) जो ज्ञान विशेषने पृथक् पदार्थ मानियें तो तो पदार्थ अनेक घर जशे, . कारण के ज्ञानविशेष अनेक प्रकारना डे. संशयथी उपरांत जवितव्यता प्रत्ययरूप सत् अर्थ पर्यालोचनात्मक तेने तर्क कहेजे. जेमके श्रा स्थाणु अथवा पुरुष जरूर दशे, आ पण ज्ञान विशेषज; ज्ञान विशेष ज्ञाताची शनिन्न, तेथी पृथक् पदार्थ कल्पवो वास्तविक नथी. ए संशय, तेमज तर्कथी उत्तरकालनावि निश्चयात्मक एवं जे ज्ञान, तेनुं नाम निर्णय दे.श्रा पण ज्ञान विशेष अने निश्चयरूप होवायी, प्रत्यदादि प्रमाणनाअंतर्भाव अवाथी टयक् पदार्थ कल्पवो वास्तविक नयी. १०-११-१२ वाद, जप, वितंडा, प्रमाण तर्क साधन उपालंज सिद्धांत अविरुफ पंच श्रवयवसंयुक्त पद, प्रतिपदानुं जे ग्रहण कर तेनुं नाम वादळे. ते वादतत्व शिष्य अने आचार्यनो ज्ञानवास्ते घाय. तया तेज वाद वीजाने जीतवावास्ते, तेनीसाये बल, जाति निग्रहस्थानयी साधन उपालंज ते जल्पवे. तयाते वादज प्रतिपदस्थापनारूपेंज वितंडा. आ वाद, जल्प, वितंमा ए त्रयेनो नेदज घर शकतो नथीकारण के तत्वनुं चितवन करवामां तत्वना निर्णयार्थे वाद करवो जोश्ये, परंतु बल, जाति पादियी तत्वनो निश्चय यश् शकतो नयी; कारण के बलादि वीजाने उगवावास्ते करवामां श्रावे. तेनाथी तत्व निर्णयनी प्राप्ति यश् शक्ती नथी. जो तेजेनो नेदपण मानशो, तोपण ते पदार्थ घश् शकता नथी, कारण के जे परमार्थयी वस्तु , तेज पदार्थ. वाद तो पुरुषनी श्वाने श्राधीन , नियतरूप नथी, ते कारणथी पदार्थ नथी. वली कुकडां, कुतरां, मेढां एऊना वादमांपण पद, प्रतिपद ग्रहण करिये तो तेर्जुनेपण तत्वज्ञाननी प्राप्ति थवी जोश्य; परंतु ते तो तमे मानता नथी, तेथी वाद, जल्प, वितंमा, पदार्थ नथी. १३ हेत्वाजास १ असिझ, २ अनेकांतिक, ३ विरुड. श्रा त्रण प्रकारेंजे. हेतु तो नथी, परंतु हेतुनी जेम नासन घायडे, तेथी हेत्वानास कहेले. ज्यारे सम्यक् हेतुऊनीज तत्व व्यवस्थिति नथी, त्यारे हेत्वाजासोनुं तो केहेबुज गुं? कारणके जे नियत खरूपथी रहे ते वस्तुबे, श्रने २३
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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