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जैनतत्त्वादर्श.
गथी उठावतां घटनो एक जागज उठवो जोइये, परंतु संपूर्णघट नहि Goat जोइयें. तथा ज्यारे घटने तेनो कांठोप कडी मे खेंचीयें, त्यारे घ नो एकदेशज श्रमापासे श्राववो जोइए, परंतु संपूर्ण घट न श्राववो जोइये, श्रने जलादिधारणरूप घटने अर्थक्रियालक्षण सत्व, अंगीकार करवा थकी सौगतोए परमाणुर्जनं मलवुं मानेलबे, घने तेना मतमां परमार्जनं मलवुं डे नहि, ते कारणथी या नवमो पूर्वापर विरोध बे. इत्यादि बौद्धमतमां ने पूर्वापर विरोधबे.
वे बौद्धमनुं थोडं खंडन पण लखिये बियें. बौद्धोनो एवो मत बे के सर्व पदार्थ नैरात्म्य बे, अर्थात् श्रात्मस्वरूपें पोताना स्वरूपथी सदा स्थिर रेहेवावाला नथी, एवी जे जावना, तेनुं नाम नैरात्म्यभावना बे. नैरात्म्यजावना रागादि क्लेशोनो नाश करनारी बे जुड़े ज्यारे नैरात्म्यभावना थशे त्यारे पोताने पोताविषे, तथा पुत्र, जाई, जार्या,
दिविषे पण आत्मीय अभिनिवेश नहि याय, अर्थात् " या मारां बे” एवो मोह नहि थाय. कारण के जे पोताने उपकारी बे ते आत्मीय बे,
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जे पोताने प्रतिघातक बे ते द्वेष बे. न्यारे श्रात्माज नथी, परंतु पूर्वापर क्षण तुटेलाउनुं अनुसंधान बे ने पूर्व पूर्व हेतुथी प्रतिबद्ध ज्ञान क्षण, तेज तेवी रीतें उत्पन्न याय बे, त्यारे कोण कोनो उपकारक तथा उपघातक बे ? कारण के क्षणो, क्षणमात्र रेहेवाथी परमार्थथी उपकार, अनुपकार करीशकता नथी. ते वास्ते तत्ववेदियोने पोताना पुत्रादिमां आत्मीय मिनिवेश नथी. तेमज वैरीयो विषे द्वेष नथी. अने लोकोने अनात्मीय पदार्थोमां जे आत्मीय अभिनिवेश बे, ते तत्वमूल होवाथी अनादि वासनाना परिपाकें करेल . एम जाणवुं.
प्रश्नः - जो परमार्थथी उपकार्युपकारक जाव नथी तो एम केम कहो बो के जगवान् सुगत करुणावडे सर्व जीवोना उपकारवास्ते देशना थापता हवा ? अने क्षणिकपणुं पण जो एकांतज बे तो तो तत्ववेत्ता पण एक क्षणपटी नाश पाम्या, अने तत्ववेत्ता पण जाणता दता के हुं भूतकालमां हतो नहि अने जविष्यमां दोवानो नथी, तो पढी मोक्षवास्ते शा माटे यत्न करे ?
उत्तरः- तमे जे कनुं ते श्रमारो अभिप्राय नहि जाणवाथी अयुक्त जे.