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चतुर्थ परिचेद.
(श्यल )
रावनारने, कारणपणाना श्रावधी त्रिकालगत अर्थने विषय कहेनारने केम पूर्वापर व्याघात यशे नहि ? कारण के कारणनेज प्रमाणनो विषय मानेल बे. ते वास्ते त्री जो पूर्वापर विरोध बे.
तथा कणय अंगीकार करवामां जेनो काल चिन्न जिन्न बे, एवा जे अन्वयव्यतिरेक, तेनी प्रतिपत्तिनो संजव थतो नथी, त्यारे तो साध्य साधनोनी त्रिकाल विषयव्याप्तिग्रहणमाननारने पूर्वापर व्यादति केम नहि ? या चोथो पूर्वापर विरोध बे.
तथा सर्व पदार्थोंने पक्ष्यी मानीने पढी बुझें एम कयुं छे. ॥ श्लोक ॥ इत एकन्वते कल्पे, शक्त्या में पुरुषोहतः ॥ तेन कर्म विपाकेन, पादे विद्धोस्मि निक्षवः॥ १ ॥ या श्लोकमां जन्मांतर विषयमां शब्दनो प्रयोग कणयविरुद्ध बोलतां थकां बुद्धने पूर्वापर विरोध केम न केवो जोइयें या पांचमो पूर्वापरविरोध .
तथा निरंश सर्व वस्तु बे एम प्रथम कहीने पढी फरी " हिंसाविरतिदान चित्तख संवेदनं श्ररुस्वगतं सङ्घव्य चेतनत्वस्वर्गप्रापण शक्त्या दिकं गृह्णदपि खर्गप्रापणशक्त्यादेरंशस्येति सांशतां पश्चारुदतः सौगतस्य कथं पूर्वापरविरुद्धं वचोन स्यात् " ए बहो विरोध बे.
तेवीज रीतें निर्विकल्पक प्रत्यक्ष प्रमाण नीलादि वस्तुने सर्वप्रकारथी ग्रहण करतां बतां नीलादि श्रंशविषे निर्णय उत्पन्न करे बे, परंतु नीलादि श्रर्थगत कणय अंशविषय निर्णय उत्पन्न करता नथी, एम सांताने कतां कां सौगतने पूर्वापरवचन विरोध सुबोधज बे. सातमो विरोध .
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तथा हेतुने त्रण रूपवाला माने बे, छाने संशयने बे उल्लेखवाला माने बे तेमज कहे बे, बतां सांश वस्तुने मानता नथी, या पणं श्रा. उमो पूर्वापर विरोध बे.
तथा परस्पर नहि मलेला परमाणु निकट संबंधवाला एकत्र य घटादिरूपपणे प्रतिजास थायडे, परंतु पोतपोतामां अंगांगी जावरूपें कोपण कार्य आरंभ करता नथी. श्रा बौद्धोनो मतले. तेमां दूषण ए डे के परमाणु पोतपोतानामां नहि मली जवाथी घटनो एकजाग ज्यारे मे हाथी पकडियें त्यारे संपूर्ण घटने न हि रेहेतुं जोइयें. तथा घटने एक जा