________________
(२५०) जैनतत्त्वादर्श. रीतें होश् शके ले ? कारण के प्रत्यक्ष प्रमाण तो सर्वसाधक नथी, कारण के तेतो (इंडियो) वर्तमान वस्तुनेज ग्रहण करेजे; अने अनुमानथी पण सर्वज्ञ सिद्ध थता नथी, कारण के अनुमान प्रत्यक्ष पूर्वकज प्रवृत्त यश् शके बे; तेमज आगम पण सर्वज्ञनी सिद्धि करनारूं कोई नश्री; कारण के आगम सर्वे विवादास्पद बे; वली उपमान पण नथी, कारण के बीजा सर्वज्ञ को होय तो उपमान बने, तेवीज रीतें अर्थापत्तिथी पण सर्वज्ञ सिक थता नथी, कारण के अन्यथा अनुपपद्यमान एवो कोर पदार्थ नथी, जे होवाथी सर्वज्ञ सिझ थाय. ज्यारे नावग्राहक पांचे प्रमाणथी सर्वज्ञ सिद्ध न थया, त्यारे सर्वज्ञ अनाव प्रमाणना विषय थया. सर्वज्ञ प्रत्यक्षादि गोचरने अतिक्रांत होवाथी, शशशृंगवत् ज्यारे कोश् देव सर्वज्ञ नश्री, अने तेवा सर्वज्ञ देवतुं कथन करेलुं ज्यारे कोश् शास्त्र नथी, त्यारे अतींडिय अर्थनुं ज्ञान केम थाय ? एवी मनमां आशंका करीने जैमिनि कहे बे के “ तस्मात् ” ते कारणथी अतीप्रिय इंजियोना विषयरहित जे, आत्मा, धर्म अधर्म, काल, स्वर्ग, नरक, परमाणु प्रमुख पदार्थो बे, तेना करतल आमलकवत् साक्षात् देखनार कोश् नथी. ते हेतुथी नित्य जे वेदवाक्य बे, तेनाश्रीज यथार्थ तत्त्वनो निश्चय थाय .कारण के वेद, अपौरुषेय बे, अर्थात् कोश्य रचेला नथी, अनादि नित्य बे, ते वेदवचनोथी अतींजिय पदार्थोनुं ज्ञान थाय , परंतु कोश् सर्वाना कहेला आगमथी यतुं नथी, कारण के सर्वज्ञ कोश्पण पूर्व कालमां थया नथी, वर्तमानमा जे नहि, अने नविष्यमा थवाना नथी. ॥ यथाहुस्ते ॥ अतींजियाणामर्थानां, साक्षात् दृष्टा न वियते ॥ वचनेनहि नित्येन, यः पश्यति सपश्यति ॥१॥
प्रश्नः-अपौरुषेय वेदना अर्थ केवीरीतें जाणी शकाय ?
उत्तरः- अमारी परंपरा जे अव्यवछिन्न जे तेनाथी जाणी शकाय डे, ते कारणथी तथा सर्वज्ञा दिनो अनाव होवाथी प्रथम वेदनाज पाठ प्र. यत्नथी करवा जोश्ये. वेद चार बे, १ रुन, ५ यजुष्, ३ सोम, ४ अथर्व. ए चारनो पोठ करी, पड़ी धर्मजिज्ञासा करवी जोश्ये ? धर्म अतींजि
१ विवादनास्थानरूप.२ वीजे प्रकारे. ३ उपपन्न नहि (सिद्धन) थयेली. ४ हथेलीमां. ५आमलानी पेठे.