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जैनतत्त्वादर्श. दित्वादय स्त्री प्रत्यये शांख्या षामि इदं दर्शनं शांख्यं शांखं वा" ॥ इति सांख्यमतसंक्षेपवर्णनं.
हवे मीमांसकमत लखिये बियें, तेनुं बीजुं नाम जैमिनीय पण कहेबे. मतवाला सांख्यमतनी पेठे एकदमी, त्रिदंडी होय , धातुरक्त वस्त्र पहेरे . मृगचर्मासन पर बेसे बे, कमंमल राखेडे, शिरमुंमित करावे, संन्यासी प्रमुख द्विज था मतमां होय , वेद तेमना गुरु , परंतु बीजा कोई वक्ता गुरु नथी. ते पोते पोताने संन्यस्तं संन्यस्तं कहे, यझोपवीतने धोईने त्रणवार तेनुं जल पीये. आमीमांसक बे प्रकारना बे, एक याज्ञिकादि, ते पूर्वमीमांसक बे, अने बीजा उत्तरमीमांसावादी डे. या झिकादि, कुकर्मना तजनार, यजनादि षट्कर्मना करनार, ब्रह्म सूत्रना धारक, गृहस्थाश्रममां स्थित, शूजनुं अन्नादि तजनार बे, तेना पण बे नेद , एक जह, बीजा प्रजाकर; नह प्रमाण माने बे, अने प्रनाकर पांच प्रमाण माने . उत्तरमीमांसक वेदान्ति बे, ब्रह्म अद्वैतज माने " सर्वमेवेदं ब्रह्मेति नाते" तेपर प्रमाण आपे ले के एकज आत्मा सर्वशरीरोमां उपलब्ध थाय . ॥ श्लोक ॥ एक एवहि नूतात्मा, जूते जूते व्यवस्थितः ॥ एकधा बधुधा चैव, दृश्यते जलचंडवत् ॥१॥ इति वचनात् ॥ " पुरुष एवेदं सर्वयभूतं यच्चन्नाव्यमिति वचनात् ॥ श्रात्मामांज लयथर्बु तेनुं नाम मुक्ति जे. बीजी कांश मुक्ति नथी. ते मीमांसक छिजज जेनुनाम जगवत् , ते चार प्रकारना बे; १ कुटीचर, ५ बहूदक, ३ हंस, ४ परमहंस. तेमा १ त्रिदंडी, सशिखा, ब्रह्मसूत्री, गृहत्यागी, यज मान, परिगृही, एकवार पुत्रना घरमां जोजन करे , कुटीमां वसेजे तेने कुटीचर कहेबे, २ तुल्यवेष, पूर्वोक्त विप्रना धरमां नीरस निदा नोजी विष्णुजापपर नदीना तीरपर रहे थे, तेने बहूदक कहे , ३ ब्रमसूत्र, शिखारहित, कषाय वस्त्र, दंडधारी, गाममां एकरात्रि अने नगरमांत्रण रात्रि रहे, अग्नि ज्यारे धूमरहित थाय त्यारे ब्राह्मणना घरमां जोजन करे जे अने तपथी शरीर शोषण करी, देशोमां फरता रहे बे, तेने हंस कदे ने हंसनेज ज्यारे ज्ञान थाय बे, त्यारे चारे वर्णना घरमां लोजन करे डे, पोतानी श्वाथी दंड राखे , ईशान दिशा सन्मुख जाय जो.शक्तिहीन थई जाय तो अनशन ग्रहण करे , ४ वेदांत एकध्यायी, ते