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श्री सेठिया जैन अन्यमाला '
संथार पायघट्टण चिट्टे उच्चासणाईसु ॥
नोट-उक्त गाथाओं में जिस क्रम से श्राशातनाएं दी गई हैं वही क्रम यहाँ भी रखा गया है । समवायांग सूत्र में एक से बीस तक की आशातनाएं इसी क्रम से हैं । इक्कीसवीं आशाना अन्त में दी गई है और शेष आशातनाओं का क्रम यही है । फलतः बाईस से तेतीस तक की आशातनाएं वहाँ क्रमशः इकोस से बत्तीस तक दी गई हैं और इक्कीसवीं आशातना वहाँ तेतीसवीं अाशातना है। दशाश्रुतस्कन्धदशा में भी तेतीस अाशातनाएं हैं। वहाँ बत्तीसवीं और तेतीसवीं आशातना एक गिनी है और इसलिये वहाँ एक आशातना अधिक है । वह यह है-रत्नाधिक के कथा कहते हुए शिष्य यह कहे कि 'अमुक पदार्थ का स्वरूप इस प्रकार है। तो आशातना होती है । इसके सिवाय दो चार अाशातनाएं आगे पीछे हैं, इसलिये क्रम में भी अन्तर हो गया है। (समवायांग ३३) (दशाश्रुतस्कन्ध तीसरी दशा) (हरिभद्रीयावश्यकप्रतिक्रमणाध्ययन) ६७६-अनन्तरागत सिद्धों के अल्पबहुत्व
के तेतीस बोल चरम भव से पूर्ववर्ती जिस भव में से आकर जीव सिद्ध होते हैं वे वहाँ से आने के कारण उस भव के अनन्तरागत सिद्ध कहलाते हैं। इस अल्पबहुत्व में चरम भव के अव्यवहित पूर्ववर्ती कौन से भवों से मनुष्यभव में आकर किस प्रकार कम ज्यादा संख्या में जीव सिद्ध होते हैं यह बतलाया गया है । अल्पबहुत्व इस प्रकार है
(१) चौथी नरक के अनन्तरागत सिद्ध सब से थोड़े हैं (२) इससे तीसरी नरक के अनन्तरागत सिद्ध संख्यात गुणा अधिक हैं (३) दूसरी नरक के अनन्तरागत सिद्ध इन से भी संख्यात