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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, सातवां भाग ६७ गुणा अधिक है। (४) पर्याप्त वादर प्रत्येक वनस्पतिकाय के अनन्तरागत सिद्ध इनसे भी संख्यात गुणा अधिक हैं (५) पर्याप्त चादर पृथ्वीकाय के अनन्तरागत सिद्ध इनसे भी संख्यात गुणा अधिक हैं (६)पर्याप्त वादर अप्काय के अनन्तरागत सिद्ध इन से भी संख्यात गुणा अधिक हैं (७) भवनपति की देवियों में के अनन्तरागत सिद्ध इनसे भी संख्यात गुणा अधिक है (८) भवनपति देवों में के अनन्तरागत सिद्ध इनसे मी संख्यात गुणा अधिक है (8) व्यन्तर देवियों में के अनन्तरागत सिद्ध इनसे भी संख्यात गुणा अधिक है। (१०) व्यन्तरदेवों में के मनन्तरागत सिद्ध इनसे भी संख्यात गुणा अधिक है (११)ज्योतिषी देवियों में के अनन्तरागत सिद्ध इनसे भी संख्यात गुणा अधिक हैं (१२) ज्योतिपी देवों में के अनन्तरागत सिद्ध इनसे भी संख्यात गुणा अधिक हैं (१३) मनुष्य स्त्रियों में के अनन्तरागत सिद्ध इनसे भी संख्यात गुणा अधिक है (१५) मनुष्यों में के अनन्तरागत सिद्ध इनसे भी संख्यात गुणा अधिक हैं (१५) पहली नरक के अनन्तरागत सिद्ध इनसे भी संख्यात गुणा अधिक हैं (१६) तिर्यश्च योनि की स्त्रियों में के अनन्तरागत सिद्ध इनसे भी संख्यात गुणा अधिक हैं (१७) तिर्यश्च योनि वालों में के अनन्तरागत सिद्ध इनमे भी संख्यात गुणा अधिक हैं (१८) अनुत्तरोपपातिक देवों में के अनन्तरागत सिद्ध इनसे भी संख्यात गुणा अधिक हैं (१३) अवेयक देवों में के अनन्तरागत सिद्ध इनसे भी संख्यात गुणा अधिक हैं (२०) अच्युत देवलोक के अनन्तरागत सिद्ध इनसे भी संख्यात गुणा अधिक हैं (२१) आरण देवलोक के अनन्तरागत सिद्ध इनसे भी संख्यात गुणा अधिक हैं (२२) प्राणत देवलोक में के अनन्तरागत सिद्ध इनसे भी संख्यात गुणा अधिक है (२३) याणत देवलोक में के अनन्तरागत सिद्ध इनसे भी संख्यात गुणा अधिक है (२४) सहस्रार देवलोक में के अनन्तरागत सिद्ध इनसे भी संख्यात गुणा अधिक हैं (२५) महाशुक्र