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श्री सेठिया जैन अन्यमाला शब्दों में उत्तर देने से अाशातना होती है।
(२२) रत्नाधिक के बुलाने पर शिष्य को उनके समीप ांकर उनकी बात सुननी चाहिये और विनय पूर्वक उत्तर देना चाहिये, ऐसा न कर अपने स्थान से ही उनकी बात सुनने और वहीं से उत्तर देने से श्राशातना होती है।
(२३) यदि शिष्य रत्नाधिक के लिये तू कारे का प्रयोग करे, उनके प्रेरणा करने पर 'तू प्रेरणा करने वाला कौन है ? ऐसे असभ्यतापूर्ण वचन कहे तो आशातना होती है। .
(२४) रत्नाधिक यदि शिष्य को किसी कार्य के लिये प्रेरणा करें तो शिष्य को उनके वचन शिरोधार्य करना चाहिये । ऐसा न करते हुए यदि शिष्य उन वचनों को उन्हीं के प्रति दोहराते हुए उनकी अवहेलना करता है तो आशातना होती है । जैसे-'हे
आर्य ! ग्लान साधुओं की सेवा क्यों नहीं करते ? तुम आलसी हो' रत्नाधिक के यह कहने पर शिष्य इन्हीं शब्दों को दोहराते हुए उन्हें कहता है-तुम स्वयं ग्लान साधुओं की सेवा क्यों नहीं करते ? तुम खुद आलसी हो।'
(२५) रत्नाधिक धर्मकथा कह रहे हों उस समय यदि शिष्य दूसरे संकल्प विकल्प करता रहे, कथा में अन्यमनस्क रहे और कथा की सराहना न करे तो आशातना होती है।
(२६) रत्राधिक धर्म कथा कह रहे हों उस समय शिष्य के, 'आप भूल रहे हैं, आपको याद नहीं, यह बात इस तरह नहीं है। इस प्रकार कहने से अाशातना होती है।
(२७) रत्नाधिक धर्मकथा कह रहे हों उस समय शिष्य किसी उपाय से कथाभंग करे और स्वयं कथा कहे तो अाशातना होती है। - (२८) रत्नाधिक महाराज धर्मकथा कह रहे हों उस समय यदि शिष्य 'श्रय मिक्षा का समय हो गया है, कथा समाप्त होनी चाहिये