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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
(२५) वचनमात्र - बिना किसी हेतु के इच्छानुसार कोई बात कहना वचन मात्र है । जैसे- किसी स्थान पर कील गाड़ कर कहना कि यह लोक का मध्य भाग है ।
(२६) अर्थापत्ति दोप- श्रर्थापत्ति से सूत्र का अनिष्ट अर्थ निकलना अर्थापत्ति दोप है। जैसे ब्राह्मण की घात न करनी चाहिये। यहाँ अर्थापत्ति से ब्राह्मण के सिवाय दूसरे को घात निर्दोष सिद्ध होती है ।
(२७) समास दोप - जहाँ समास करना आवश्यक है वहाँ समास न करना अथवा विपरीत समास करना समास दोष है ।
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(२८) उपमा दोष- 'मेरु सरसों के समान है' या 'सरसों मेरु के समान है' इस प्रकार हीन अथवा अधिक से सदृशता बताना उपमा दोष है । अथवा 'मेरु समुद्र जैसा है' इस प्रकार सदृशता - रहित पदार्थ से उपमा देना उपमा दोष है ।
(२९) रूपक दोप- रूपक में श्रारोपित वस्तु के अवयवों का वर्णन न करना अथवा दूसरी (अनारोपित) वस्तु के अवयवों का वर्णन करना रूपक दोप है । जैसे- पर्वत के रूपक में उसके शिखर आदि अवयवों का वर्णन न करना अथवा पर्वत के रूपक में समुद्र के अवयवों का वर्णन करना ।
(३०) निर्देश दोप - निर्दिष्ट पदों का एक वाक्य न बनाना निर्देश दोप है। जैसे- 'देवदत्त थाली में पकाता है' न कह कर 'देवदत्त थाली में' इतना ही कहना ।
(३१) पदार्थ दोप - वस्तु की पर्याय को भिन्न पदार्थ रूप से कहना पदार्थ दोष है । जैसे वैशेषिकों का सत्ता को, वस्तु की पर्याय होते हुए भी, भिन्न पदार्थ मानना ।
बृहत्कल्प भाष्य में पदार्थ दोप के स्थान में पद दोप दिया गया है । शब्द के आगे धातु के प्रत्यय लगाना और धातु के आगे शब्द के प्रत्यय लगाना पद दोष है ।