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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
खाओ पित्रो मौज उड़ाओ, गया समय वापिस नहीं लौटता, यह शरीर पाँच भूतों का पिण्ड रूप है इत्यादि ।
(७ निःसार-युक्तिशून्य सारहीन वचन निःसार कहलाता है।
(८) अधिक-जिसमें आवश्यकता से अधिक अक्षर, मात्रा, पद वगैरह हों वह सूत्र अधिक दोप से दुपित है।
अथवा जिस में हेतु या उदाहरण अधिक हों वह सूत्र अधिक दोष वाला कहा जाता है। जैसे-शब्द अनित्य है क्योंकि कृतक है, जैसे घट, पट । यहाँ एक उदाहरण अधिक है।
(8) ऊन-जिसमें अक्षर,मात्रा, पद आदि कम हो वह सूत्र ऊन दोष वाला है । अथवा जिसमें हेतु या उहाहरण कम हो वह सूत्र ऊन दोप वाला कहा जाता है । जैसे-कृतक होने से शब्द अनित्य है। यहाँ उदाहरण की कमी है।
(१०) पुनरुक्त-पुनरुक्त दोप शब्द और अर्थ के भेद से दो प्रकार का है । घट, घट-यह शब्द पुनरुक्त है। घट, कट, कुम्भ यह अर्थ पुनरुक्त है।
(११) व्याहत-पहले कही हुई बात में पिछली बात से विरोध आना व्याहत दोप है । जैसे कर्म है, फल है किन्तु को नहीं है।
(१२) अयुक्त-युक्ति के आगे न टिक सकने वाला वचन अयुक्त कहलाता है । जैसे हाथियों के गंडस्थल से चूने वाली मदविन्दुओं से हाथी घोड़े और रथ को वहाने वाली नदी वहने लगी।
(१३) क्रमभिन्न-क्रम का टूट जाना क्रमभिन्न है । जैसे स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र इन्द्रिय के स्पर्श, रूप, शब्द, गन्ध और रस विषय हैं।
(१४) वचन भिन्न-वचनों (एकवचन, द्विवचन और बहु वचन) का व्यत्यय होना अर्थात् एक वचन की जगह दूसरे वचन का प्रयोग होना वचन भिन्न दोप है।