________________
श्री सेठिया जन अन्थमाली करने की उनकी प्रार्थना भी स्वीकार न करे । उनके साथ प्रामादि में विहार न करे, न उनके साथ एकान्त में बैठे। इस तरह स्त्रीसंपर्क का परिहार करने से साधु समस्त अपायों से बच जाता है।
(६) 'अमुक समय मैं आपके पास आऊँगी' इस प्रकार संकेत देकर एवं नाना प्रकार के ऊँच नीच वचनों द्वारा विश्वास पैदा कर स्त्रियाँ अपने साथ भोग भोगने के लिये साधु से प्रार्थना करती हैं। स्त्री सम्बन्धी नाना प्रकार के शब्दादि विषय दुर्गति के कारण हैं यह जान कर साधु को इनका त्याग करना चाहिये।
(७) मीठे वचन कहना, प्रेम भरी दृष्टि से देखना, अङ्ग प्रत्यंग दिखाना आदि चित्त को आकृष्ट करने वाले अनेक प्रपंच कर स्त्रियां करणोत्पादक वचन कहती हुई विनय पूर्वक साधु के समीप आती हैं। साधु के समीप आकर वे विश्वासोत्पादक मधुर वचन कहती हैं। मैथुन सम्बन्धी वचनों से साधु के चिच को वश कर अन्त में वे उसे कुकर्म करने के लिये प्राज्ञा देती हैं।
(८) जैसे बन्धन विधि में दक्ष पुरुष मांस का प्रलोभन देकर निर्भीक अकेले विचरने वाले सिंह को गलयन्त्र आदि से बांध लेते हैं एवं विविध प्रकार से उसे दुःख देते हैं इसी प्रकार मधुर भापण श्रादि विविध उपायों से स्त्रियां भी मन वचन काया को पश किये हुए जितेन्द्रिय साधु को अपने जाल में फंसा लेती हैं।
(E) जैसे सुथार नेमिकाष्ठ को धीरे धीरे नमा कर कार्य योग्य घना लेता है इसी प्रकार स्त्रियां मीसाधु को अपने वश में कर शनैः शनैः इष्ट अर्थ की ओर झुका लेती हैं। जैसे जाल में फंसा हुआ हिरण छटपटाता हुआ भी जाल से मुक्ति नहीं पाता, उसी प्रकार स्त्री के मायापाश में फंसा हुआ साधु प्रयत्न करने पर भी उससे अपने को नहीं छुड़ा सकता।
(१०) जिस प्रकार विष मिश्रित खीर खाकर विष के दारुण