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श्री जैन सिद्धान्त पोल संग्रह, साता भाग
कि किसी तरह समर्थन नहीं किया जा सकता । वस्तुतः सूत्रकार के आगे स्त्री और पुरुष का इस दृष्टि से कोई भेद नहीं है। इसी लिये टीकाकार ने यह कहा है कि स्त्री के परिचय से पुरुषों को जो दोष कहे गये हैं, वे ही पुरुषों के संसर्ग से स्त्रियों को भी होते हैं, अतएव साधना में प्रवृत्त साध्वियों के लिये भी पुरुषों के परिचय आदि का त्याग करना श्रेयस्कर है । चौथे अध्ययन के प्रथम उद्दशे की ३१ गाथाएं हैं जिनका भावार्थ क्रमशः दिया जाता है। __(१) साधु मावा पिता भाई बहन आदि पूर्व संयोग एवं सास ससुरादि पश्चात् संयोग का त्याग कर दीक्षा ग्रहण करता है । दीक्षा लेते समय वह प्रतिज्ञा करता है कि मैं राग द्वेष कपाय से निवृत्त हो ज्ञानदर्शन चारित्र धारण करूँगा एवं वासना से विरत होकर एकान्त स्थानों में विचरूँगा।
(२) कामान्ध विवेकशून्य स्त्रियाँ कार्य विशेष का बहाना कर उक्त महात्मा पुरुष के समीप आती हैं । सूक्ष्म माया जाल का प्रयोग कर वे साधु को शील से स्खलित कर देती हैं। वे मायाविनी स्त्रियाँ साधु को ठगने के उन उपायों को जानती हैं जिनसे वह मुग्ध होकर उन में आसक्त हो जाता है। . (३) साधु को ठगने के लिये स्त्रियों द्वारा किये गये उपायस्त्रियाँ अत्यन्त हे प्रकट करती हुई साधु के समीप आकर बैठती हूँ । वासनापर्धक सुन्दर वस्त्रों को ढीला करके वारवार पहनती हैं। वासना जगाने के लिये वे जंघा आदि अंग दिखलाती हैं एवं भुजा उठा कर कांख दिखाती हुई साधु के सामने जाती हैं। : (४) एकान्त देख कर ये स्त्रियां शय्या आदि का उपभोग करने के लिये साधु से प्रार्थना करती हैं । परमार्थदर्शी साधु त्रियों की ऐसी हरकतों को बन्धन रूप समझे। : (५) ऐसी स्त्रियों से साधु अपनी दृष्टि न मिलावे ! अकार्य