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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
(सातवां भाग)
मङ्गलाचरण सर्वज्ञमीश्वरमनन्तमसंगमग्रयं ।
सार्वीयमस्मरमनीशमनीहमिद्धम् ॥ सिद्धं शिवं शिवकर करणव्यपेनं ।
श्रीमज्जिनं जितरिपुं प्रयतः प्रणामि ॥१॥ श्रीमत्पावजिनं नत्वा, स्मृत्वा च गुरुदेवताम् ।
सिद्धान्तसंग्रहे भागःसप्तमोऽयं विरच्यते ॥२॥ (१) सर्वज्ञ, ईश्वर, अनन्त, असंग, प्रधान, सर्वहितावह, अस्मर (वासनारहित), अनीश (स्वामी रहित), अनीह (इच्छा रहित), तेजस्वी, सिद्ध, शिव, शिवकर, करण अर्थात् इन्द्रिय एवं शरीर से रहित, जितरिषु श्रीमान् जिनेश्वर भगवान् को प्रपत्न पूर्वक प्रणाम करता हूं।
(२) श्री पार्श्वजिन भगवान् को प्रणाम कर एवं गुरुदेव का स्मरण कर श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह के सातवें भाग की रचना की जाती है।