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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
इकतीसवाँ बोल संग्रह ६६१-सिद्ध भगवान् के इकतीस गुण
ज्ञानावरणीयादि पाठ कर्मों का सर्वथा क्षय कर सिद्धिगति में विराजमान होने वाले सिद्ध' कहलाते हैं।
ज्ञानावरणीय आदिआठ कर्मों की इकतीस प्रकृतियाँ हैं । सिद्ध भगवान् ने इन प्रकृतियों का सर्वथा क्षय कर दिया है । इसलिये उनमें इनके क्षय से उत्पन्न होने वाले इकतीस गुण होते हैं - नव दरिसणम्मि चत्तारि आउए पंच आइमे अन्ते । सेसे दो दो भेया खीणभिलावेण इगतीस ।।
(१) क्षीण भाभिनिवोधिक ज्ञानावरण (२) क्षीण श्रुतज्ञानाचरण (३) क्षीण अवधि ज्ञानावरण (४) क्षीण मनःपर्यय ज्ञानावरण (५) क्षीण केवलज्ञानावरण (६) क्षीण चक्षुदर्शनावरण (७) क्षीण अचक्षुदर्शनावरण (6) क्षीण अवधिदर्शनावरण (8) क्षीण केवलदर्शनावरण (१०) क्षीण निद्रा (११) क्षीण निद्रानिद्रा (१२) क्षीण प्रचला (१३) क्षीण प्रचला प्रचला (१४) क्षीण स्त्यानगृद्धि (१५) क्षीण सातावेदनीय (१६। क्षीण असातावेदनीय (१७) क्षीण दर्शनमोहनीय (१८) क्षीण चारित्रमोहनीय (१६) क्षीण नैरयिकायु(२०) क्षीण तिर्यञ्चायु (२१) क्षीण मनुष्यायु (२२) क्षीण देवायु (२३) क्षीण उच्च गोत्र (२४) क्षीण नीच गोत्र (२५) क्षीण शुभ नाम (२६) क्षीण अशुभ नाम (२७) क्षीण दानान्तराय (२८) क्षीण लाभान्तगय (२६) क्षीण मोगान्तराय (३०) क्षीण उपभोगान्तराय (३१) क्षीण वीर्यान्तराय ।
सिद्ध भगवान् के गुण इस प्रकार भी बतलाये गये हैंपडिसेहण संठाणे य वण्णगंधरसफास वेए य। पण पण दु पण तिहा एगतीसमकायऽसंगऽरुहा ॥