________________
www
श्री सेठिया जैन प्रन्यमाला दोनों में से एक को भी न छोड़ो । व्यवहार का उच्छेद होने से अवश्य ही तीर्थ का नाश होता है। पच वस्तुक)
६-मोक्षमार्ग नाणं च दंसणं चेव, चरितं च तवो तहा । एयं भग्गमणुप्पत्ता, जीवा गच्छंति सुग्गई ॥१॥
भावार्थ-सभ्यग्जान, सम्यग्दर्शन, सम्यक् चारित्र और तप ये चारों मोक्षमार्ग यानी मोक्ष के उपाय हैं । मोक्ष के इस मार्गकी आराधना कर जीव सुगति प्राप्त करते हैं। नाणेण जाणइ भावे, दसणेण य सद्दहे । चारितण निगिरहाई, तवेण परिसुज्झइ ।।२।। भावार्थ-सम्यग्ज्ञान द्वारा मात्मा जीवादि पदार्थों को जानता है और सम्यग्दर्शन द्वारा उन पर श्रद्धा करता है । चारित्र द्वारा आत्मा नवीन कर्म आने से रोकता है एवं तप द्वारा पुराने कर्मों को नाश कर शुद्ध होता है। (उत्तराध्ययन अ० २८ गाथा ३, ३५)
जया जीवमजीवे य, दोवि एए वियाणइ । तया गई बहुविहं, सव्वजीवाण जाणइ ।। ।।
भावार्थ-जब आत्मा जीव और अजीव दोनों को भली भांति जान लेता है तब वह सब जीवों की नानाविध नरक तिर्यश्च आदि गतियों को जान लेता है।
जया गई बहुविहं, सव्व जीवाण जाणइ । तया पुगणं च पावं च,बंध मोक्खं च जाणइ ॥४॥
भावार्थ-जब वह सब जीवों की नानाविध गतियों को जान .जेता है तब पुण्य, पाप, बन्ध और मोक्ष को भी जान लेता है ।