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बयालीस पुण्य MEल नं० ६३३और
श्री अन सिद्धान्त गोल भंगह, सातवा भाग १५१ बैंक्रिय शरीर (३५) तैजम शरीर (३६) आहारक शरोर (३७). कार्मण शरीर ३८) औदारिक अगोपांग (३६) वैक्रिय अंगोपांग (४. आहारक अंगोपांग (४१) श्रगुरुलघु नाम (४. शुभविहायोगति-ये बयालीस पुण्य प्रकृतियाँ हैं। (कर्म ग्रन्थ पांचर्चा)
नोट-इसी ग्रन्थ के तीसरे भाग में बोल नं०६३३ौतत्व) , में पुण्य तत्व और पाप तत्व में क्रमशः ४२ पुण्य प्रकृतियाँ और ८२ पाप प्रकृतियाँ दी गई हैं।
तयालीसवां बोल ६६४-प्रवचन संग्रह तयालीस
१-धर्म धम्मो मंगल मुक्किटं, अहिंसा संजमो तवो। देवा वि तं नमसंति, जस्स धम्मे सया मणो॥१॥
भावार्थ-धर्म सर्व श्रेष्ठ मंगल है । अहिंसा संयम और तप धर्म के प्रकार हैं ? जिस पुरुष का चित्त सदा धर्म में लगा रहता है उसे देवता भी मस्तक झुकाते हैं। दशवैकालिक पहला अ० गाथा १)
धम्मो ताणं धम्मो सरणं धम्मो गइ पइहा य । धम्मेण सुचरिएण य गम्मद अजरामरं ठाणं ॥२॥
भावार्थ-धर्म त्राण और शरण रूप है. धर्म ही गति है तथा धर्म ही आधार है। धर्म की सम्यग् अाराधना करने सजीव अजर अमर स्थान यानी मोक्ष प्राप्त करता है। (तदुलवेयालय गाथा ३)
जरामरणवेगेण, वुज्झमाणाण पाणिणं । धम्मो दीवो पइट्टा य, गई सरणमुत्तमं ॥ ३ ॥ भावार्थ-जरा और मरण के प्रवाह में वहते हुए प्राणियों के