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श्री सेठिया जैन प्रग्यमात्या
भावार्थ-पाँच इन्द्रिय,चार कषाय, पाँच अवत, पच्चीस क्रियाएं और तीन योग ये बयालीस श्राश्रव के भेद हैं।
इन्द्रिय आदि के भेदों के नाम और स्वरूप इसी ग्रन्थ के प्रथम भाग में दिये गये हैं। पाँच इन्द्रिय और पाँच अनत बोल नं० २८९ में है। चार कषाय बोल नं. १५८ और तीन योग वोल नं. ६५ में दिये गये हैं। पञ्चीस क्रियाएं पाँच पाँच करके वोल नं. २६२ से. २६६ तक में दी गई है।
६६३-पुण्य प्रकृतियाँ बयालीस - आठ कर्मों की प्रकृतियों में कुछ शुभ फल देने वाली हैं और शेष अशुभ फल देने वाली हैं। शास्त्रकारों ने शुभाशुभ फल के मेदसे उन्हें पुण्य प्रकृतियाँ और पाप प्रकृतियाँ कही हैं। पाप प्रकृतियाँ हर और पुण्य प्रकृतियाँ ४२ हैं। पुण्य प्रकृतियों के नाम ये हैतिरि णरसुगउ उच्चं, सायं परघाय आयवुज्जोयं। जिण ऊसास णिम्माण,पणिदिवइरुसभ चउरंसं ॥
तस दस चउवण्णाई,सुरमणुदुगपंचतणु उवंगतिगं। ___अगुरुलहु पढमखगई, बायाला पुण्णपगईओ ।। ' ' (१) तियेचायु (२) मनुष्यायु (३) देवायु (४) उच्चगोत्र (५)
सातावेदनीय (६) पराघात नाम (७) आतप नाम (८) उद्योत नाम '(8) तीर्थङ्कर नाम (१०)श्वासोच्छ्वास नाम (११) निर्माण नाम *(१२) पञ्चेन्द्रिय जाति (१३ वज्रऋषभ नाराच संहनन (१४)
समचतुरस्त्र संस्थान (१५) (प्रस दशक) स नाम (१६) बादर • नाम (१७) पर्याप्त नाम (१८) प्रत्येक नाम (१६) स्थिर नाम (२०)
शुभ नाम (२१) सुभग नाम (२२) सुस्वर नाम (२३) आदेय नाम (२४) यश कीर्ति नाम (२५) शुभ वर्ण (२६) शुभ गन्ध (२७) • शुभ रस (२८) शुभ स्पर्श (२६) देव गति (३०) देवानुपूर्वी ३१) , मनुष्यगति (३२) मनुष्यानुपूर्वी (३३) औदारिक शरीर (३४)