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श्री सेठिया जैन गन्धमाला (२२) अभ्रवालुका-अभरख से मिली हुई चालू (२३) गोमेजक (२४) रुचक (२५) अंक (२६ स्फटिक (२८ लोहिताच ( ८) मरकत (२६) मसारगल्ल (३०) भुजमोचक (३१) इन्द्रनील ३२) चन्दन (३३ गैरिक ३४)हँस गर्भ (३५'पुलक (३६) सौगन्धिक (३७) चन्द्रप्रेम (३८ वैडूर्य (३६) जलकान्त (४०) सूर्य कान्त। तेईस से चालीस तक के अठारह भेद मणियों के नाम हैं।
(प्रज्ञापना प्रथम पद सूत्र १५) ९८८-दायक दोष से दूषित चालीस दाता
एषणा ग्रहणैषणा) केशंकितादि दस दोष हैं। उनमें छठादायक दोष है। जिन व्यक्तियों से दान ग्रहण करने में साधु के प्राचार. में. दोष लगने की सम्भावना रहती है उनसे आहारादि ग्रहण करना दायक दोष है । पिण्डनियुक्तिकार ने साधु को चालीस व्यक्तियों से दान लेने के लिये मना किया है और उनसे दान लेने में होने वाले दोष दिखलाये हैं । इमनिये ग्रहणेपणा की शुद्धि के लिये साधु को उनसे दान न लेना चाहिये । चालीस व्यक्तियों के नाम इसी ग्रन्थ. के तीसरे भाग में बोल नं. ६६३ पृष्ठ २४३ में दिये गये हैं ।
इकतालीसवां बोल १८६-उदीरणा बिना उदय में आने वाली
. इकतालीस प्रकृतियाँ काल प्राप्त कर्म परमाणुओं का अनुभव करना उदय है जिन कर्म परमाणुओं के फल भोग का समय नहीं हुआ है और जो उदयावलिका के बाहर रहे हुए हैं उन्हें कषाय सहित अथवा कपाय: रहित योग नामवाले वीर्य विशेष से खींच कर, उदयप्राप्त कर्म परमाणुमों के साथ भोगना उदीरणा कहलाता है। उदय और