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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, सातवा भाग १४५ में एक एक पुकार पर्वत है। इन इषुकार पर्वतों द्वारा यह द्वीप पूर्वार्द और पश्चिमाई इन दो भागों में विभक्त हो गया है। धातकीखएड की तरह पुष्करार्द्ध द्वीप में भी दो इपुकार पर्वत हैं। इस प्रकार समय क्षेत्र में तीस वर्षधर, पाँच सुमेरु और चार पुकार ये उनचालीस कुल पर्वत हैं।
(समवागि ३६) चालीसवां बोल संग्रह ९८७-खर बादर पृथ्वीकाय के चालीस भेद
पृथ्वीकाय के दो भेद हैं-सूक्ष्म पृथ्वीकाय और बादर पृथ्वीकाय। बादर पृथ्वीकाय, श्लक्ष्ण बादर पृथ्वीकाय और खर बादर पृथ्वीकाय के भेद से दो प्रकार की है। खरवादर पृथ्वीकाय के पों वो अनेक भेद है पर मुख्य रूप से चालीस कहे गये हैं। वे ये हैंपुढवी य सक्करा वालुया य उवले सिला य लोणूसे । अय तंय तउयसीसय रुप्प सुवण्णे य वइरे य॥७३॥ हरियाले. हिंगुलए मणोसिला सासगंजण पवाले । अन्भपडलम्भ वालय वायरकाय मणि विहाणा ॥४॥ गोमेजए य रुयए अंके फलिहे य लोहियक्खे य । मरगय मसारगल्ले भुजमोयग इंदणीले य ॥७२॥ चंदण गेरुय हंसगन्न पुलए सोगंधिए य बोद्धव्वे । चंदप्पम वेरुलिए जलकते सुरकते य ॥ ७६ ॥
. (उत्तराध्ययन अध्ययन ३६) अर्थ-(१) शुद्ध पृथ्वी (२) शर्करा (३) वालुका (8) पत्थर (५) शिला (६) लवण (७) ऊप (८) लोहा (8) ताँगा (१०) अपु-कधीर (११) मीसा (१२) चांदी (१३) सोना (१४)वज-हीरा (१५) हरताल (१६) हिंगलु (१७) मनःशिला (१८) सासग-पारा (18)अंजन(२०)प्रवाल-गा(२१) अनपटल-अमरख(मोडल).