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भी सेठिया जैन ग्रन्थमाला
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लिये बिना वे तीर्थङ्कर ही नहीं हो सकते ।
(३७) भावमार्ग को अङ्गीकार कर व्रत धारण करने वाले साधु को यदि छोटे बड़े अनुकूल प्रतिकूल परीषद उपसर्ग सताने लगें तो साधु को उनके वश होकर संयम से विचलित न होना चाहिये। आँधी और तूफान में जैसे पहाड़ अडिग रहता है उसी प्रकार, उसे भी संयम में स्थिर रहना चाहिये ।
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. . (३८) आश्रव द्वारों का निरोध करने वाले, महा बुद्धिशील, वीर साधु को दूसरे से दिया हुआ शुद्ध एषणीय आहार ग्रहण करना चाहिये । कषायाग्नि को शान्त कर उसे जीवन पर्यन्त सर्वश देव द्वारा प्रतिपादित इस मार्ग की अभिलाषा रखनी चाहिये ।
(सूयगडांग सूत्र ११ वां श्रध्ययन)
उनचालीसवाँ बोल
६८६ - समय क्षेत्र के उनचालीस कुलपर्वत. ६. जम्बूद्वीप, धातकीखण्ड और पुष्करार्द्ध ये ढाई द्वीप हैं। इनमें तथा इनके विभाजक समुद्रों में मनुष्य रहते हैं इसलिये इन्हें मनुष्य क्षेत्र कहा जाता है । सूर्य की गति से होने वाले घड़ी, घण्टा, दिन, पक्ष, मास, वर्ष, युग आदि समय की कल्पना भी इन्हीं क्षेत्रों में की जाती है इसलिये इन्हें सययक्षेत्र भी कहा जाता है । क्षेत्रों की मर्यादा करने वाले पर्वत कुलपर्वत कहे जाते हैं । ढाई द्वीप में उनचालीस कुलपर्वत हैं। जम्बूद्वीप में चुल्लहिमवान्, महाहिमवान्, निषध, नील, रुक्मी और शिखरी ये छह वर्षधर पर्वत हैं । धातकीखण्ड और पुष्करार्द्ध में बारह बारह वर्षधर पर्वत हैं । वहाँ उक्त छहों पर्वत दो दो क़ी संख्या में हैं । इस प्रकार ३० वर्षधर पर्वत हुए । ढाई द्वीप में पाँच समेरु पर्वत हैं । एक जम्बुद्वीप में, दो धातकीखण्ड में और दो पुष्करार्द्ध में । धातकीखण्ड द्वीप के मध्य भाग में दक्षिण और उचर