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श्री सेठिया जैन प्रथमाला
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टीका करते हुए टीकाकार ने कहा है-
नोइन्द्रियं मनस्तत्र च यद्यपि मनःपर्याप्त्यभावे द्रव्य मनो नास्ति तथाऽपि भावमनसश्चैतन्यरूपस्य सदा भावान्तेनोपयुक्तानामुत्पत्तेनइन्द्रियोपयुक्ता उत्पयन्त
इत्युच्यते ।
भावार्थ- नोइन्द्रिय का अर्थ मन है । यद्यपि वहाँ मनःपर्याप्ति नहीं है और इस कारण द्रव्य मन नहीं है तो भी चैतन्य रूप भावमन सदा रहता है और उस उपयोग वाले जीवों की उत्पत्ति होती है । श्रतः नोइन्द्रिय उपयोग वाले उत्पन्न होते हैं ऐसा कहा जाता है।
(२६) प्रश्न- द्रव्य क्षेत्र काल भाव- इनमें कौन किससे सूक्ष्म है ? उत्तर-- समय रूप काल सूक्ष्म माना जाता है । शतपत्र भेद में प्रत्येक पत्र के भेदन में असंख्यात समय का होना माना गया है । काल की अपेक्षा क्षेत्र अधिक सूक्ष्म हैं क्योंकि अङ्गुलश्रेणी प्रमाण क्षेत्र में असंख्यात श्रवसर्पिणी के समयों के बराबर आकाश प्रदेश कहे गये हैं। क्षेत्र की अपेक्षा द्रव्य और भी अधिक सूक्ष्म है क्योंकी एक आकाशप्रदेश में अनन्तानन्त परमाणु आदि पुद्गल द्रव्य रहे हुए हैं । द्रव्य की अपेक्षा भाव अर्थात् पर्याय सूक्ष्म है क्योंकि एक परमाणु की अनन्तानन्त पर्यायें होती हैं । हरिभद्रीयावश्यक में काल से क्षेत्र की सूक्ष्मता बतलाते हुए कहा है
सुमो य होइ कालो तओ सुहुमयरं हवइ खितं । अंगुल सेढी मित्ते ओसप्पिणीओ असंखेज्जा ॥ भावार्थ- काल सूक्ष्म है और क्षेत्र उससे भी अधिक सूक्ष्म है । श्रङ्गुल श्रेणी प्रमाण क्षेत्र में असंख्यात अवसर्पिणियाँ होती हैं।
अवधिज्ञान का aिys aतलाते हुए हरिभद्रीयावश्यक में बतलाया है कि. काल, क्षेत्र, द्रव्य और पर्याय (भाव) क्रमशः सूक्ष्म सूक्ष्मतर हैं । इसलिये पहले विषय की वृद्धि होने पर नियमपूर्वक