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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
यतएव उनके मायाप्रत्यया और आरम्भिकी ये दो क्रियाएं होती हैं । संयतासंयत परिग्रह धारी होता है अतएव उनके उक्तः दो तथा पारिग्रहिकी ये तीन क्रियाएं होती हैं। असंयत के तीन भेद हैं- सम्यग्दृष्टि, मिध्यादृष्टि एवं सम्यग्मिथ्यादृष्टि | असंयत सम्यग्दृष्टि के प्रत्याख्यान नहीं होते इसलिये उसके चार क्रियाएं होती हैं- श्रारम्भिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया और अप्रत्या ख्यान प्रत्यया । मिध्यादृष्टि एवं सम्यग्मिध्यादृष्टि के उक्त चार एवं मिथ्या दर्शन प्रत्यया ये पाँच क्रियाएं होती हैं ।
(२७) प्रश्न- क्या पृथ्वी के जीव अठारह पाप का सेवन करते हैं ? उत्तर- भगवती उन्नीसवें शतक के तीसरे उद्देशे में श्री गौतम स्वामी ने प्रश्न किया है - हे भगवन् ! क्या पृथ्वी काय के जीव प्राणातिपात, मृषावाद यावत् मिथ्यादर्शनशम्य रूप अठारह पापस्थान सेवन करने वाले कहे जाते हैं ? उत्तर में भगवान् ने फरमाया हैहे गौतम! पृथ्वीकाय के जीव प्राणातिपात यावत् मिथ्यादर्शन शल्य रूप अठारह पापस्थानों के सेवन करने वाले कहे जाते हैं। वचन भादि के अभाव में पृथ्वीकाय के जीवों को मृषावादादि पाप कैसे लग सकते हैं ? इसका समाधान करते हुए टीकाकार ने कहा है - यश्चेह वचनाद्यभावेऽपि पृथ्वी कायिकानां मृपावादादिभि रूपाख्यानं तन्मृपावादाद्यविरति मात्रित्योच्यते । श्रर्थात् वचनादि के न होते हुए यहाँ जो पृथ्वीकाय के जीवों को मृपावादादि से युक्त कहा है वह मृषावादादि अविरति की अपेक्षा जानना चाहिये । चूँकि उन्होंने मृषावादादि पापस्थानों का त्याग नहीं किया है इसलिये उन्हें ये पाप लगते रहते हैं ।
(२८) प्रश्न- द्रव्यमन और भावमन का क्या स्वरूप १ क्या द्रव्य और भावमन एक दूसरे के बिना भी होते हैं !
• उत्तर - प्रज्ञापना सूत्र के पन्द्रहवें इन्द्रिय पद में टीकाकार ने