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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला: .
“उन सब. को रख आया। इसके पश्चात् वरधनु ने-आकर उन सब की आँखों में संजीवन गुटिका का अंजन किया जिससे वे सब स्वस्थ हो गये। सामने वरधनु को देखकर वेआश्चर्य करने लगे। वरधनु ने उनसे सारी हकीकत कह सुनाई । तत्पश्चात् वरधनु ने उन सबको अपने किसी सम्बन्धी के यहाँ रख दिया और वह स्वयं ब्रह्मदत्त को ढूढने के लिये निकल गया। बहुत दूर किसी वन में उसे ब्रह्मदत्त मिल गया । फिर वे अनेक नगरों एवं देशों को जीतते हुए आगे बढ़ते गये। अनेक राजकन्याओं के साथ ब्रह्मदत्त का विवाह हुआ। छः खण्ड पृथ्वी को विजय करके वापिस कम्पिलपुर लौटे । दीर्घपृष्ठ राजा को मार कर ब्रह्मदत्त ने वहाँ का राज्य प्राप्त किया। चक्रवर्ती की ऋद्धि का उपभोग करते हुए सुख पूर्वक समय व्यतीत करने लगे।
मन्त्रीपुत्र वरधनु ने राजकुमार ब्रह्मदत्त की तथा अपने सब कुटुम्बियों की रक्षा कर ली, यह उसकी पारिणामिकी बुद्धि थी।
(उत्तराध्यन अ० १३ टीका) मन्त्रीपुत्र विषयक दृष्टान्त दूसरे प्रकार से भी दिया जाता है।
एक राजकुमार और मन्त्रीपुत्र दोनों संन्यासी का वेष बनाकर अपने राज्य से निकल गये । चलते हुए एक नदी के किनारे पहुंचे। सूर्य अस्त हो जाने से रात्रि व्यतीत करने के लिये वे वहाँ ठहर गये। वहाँ एक नैमित्तिक पहले से ठहरा हुआ था। रात्रि को शृगाली चिल्लाने लगी। राजकुमार ने नैमित्तिक से पूछा-यह शृगाली क्या कह रही है ? नैमित्तिक ने जवाब दिया-- यह शृगाली कह रही है कि नदी में एक मुर्दा जा रहा है। उसके कमर में सौ मोहरें बंधी हुई हैं । यह सुन कर राजकुमार ने नदी में कूद कर उस मुर्दे को निकाल लिया। उसकी कमर में एंधई मौ मोहरें उसने ले ली और मृतकलेवर को शृंगानी