________________
बा
80
श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला' वह अपनी निन्दा एवं तपस्वी मुनियों की प्रशंसा, करने लगा। उपशान्त चित्तवृत्ति के कारण तथा परिणामों की विशुद्धता से उसको उसी समय केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। देवता लोग केवलज्ञान का उत्सव मनाने के लिये आने लगे। यह देखकर उन तपस्वी मुनियों को भी अपने कार्य के लिए पश्चात्ताप होने लगा। परिणामों की विशुद्धता के कारण उनको भी उसी समय केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। __नागदत्त मुनि ने प्रतिकूल संयोग में भी समभाव रखा जिसके परिणाम स्वरूप उमको केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। यह उसकी पारिणामिकी बुद्धि थी।
(नन्दी सूत्र) __(११) अमात्यपुत्र--कम्पिलपुर के राजा ब्रह्म के मन्त्री का नाम धनु था। राजा के पुत्र का नाम ब्रह्मदत्त और मन्त्री के पुत्र का नाम वरधनुथा । राजा की मृत्यु के पश्चात् दीर्घपृष्ठ राज्य संभालता था। रानी चुलनी का उसके साथ प्रेम हो गया। दोनों ने कुमार को प्रेम में बाधक समझ कर उसे मार डालने के लिये षड्यन्त्र किया । तदनुसार रानी ने एक लाक्षागृह तैयार कराया, कुमार का विवाह किया और दम्पति को सोने के लिए लाक्षागृह में भेजा। कुमार के साथ वरधनु भी लाक्षागृह में गया । अर्द्ध रात्रि के समय दीर्घपृष्ठ और रानी के सेवकों ने लाक्षागृह में आग लगा दी। उस समय मन्त्री द्वारा बनवाई हुई गुप्त सुरङ्ग से ब्रह्मदत्त कुमार और मन्त्रीपुत्र वरधनु बाहर निकल कर भाग गये। भागते हुए जब वे एक घने जंगल में पहुंचे तो ब्रह्मदत्त को बड़े जोर से प्यास लगी । उसे एक वट वृक्ष के नीचे बिठाकर वरधनु पानी लाने के लिये गया.!
इधर दीर्घपृष्ठ को जब मालूम हुआ कि कुमार ब्रह्मदत्त लाक्षागृह