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श्री सेठिया जैन मॅन्थमालां
खुदवाई है जो गंगा नदी के किनारे जाकर निकलती है। इसके पश्चात् वे उस सुरंग द्वारा गंगा नदी के किनारे जाकर निकले । वहाँ पर धनु मंत्री ने दो घोड़े तय्यार रखे थे, उन पर सवार होकर वे वहाँ से बहुत दूर निकल गये ।
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इसके पश्चात् वरधनु के साथ ब्रह्मदत्त अनेक नगर एवं देशों गया । वहाँ अनेक राजकन्याओं के साथ उनका विवाह हुआ । चक्रवर्ती के चौदह रत्न प्रकट हुए । छःखण्ड पृथ्वी को जीत कर वह चक्रवर्ती बना |
धनु मन्त्री ने सुरङ्ग खुदवा कर अपने स्वामिपुत्र ब्रह्मदत्त की रक्षा कर ली । यह उसकी पारिणामिको बुद्धि थी । (आव. म.गा. ६४६) (नदी सू. २७ गा. ७२, (त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्रपर्व ९) (१०) क्षपक - किसी समय एक तपस्वी साधु पारणे के दिन भिक्षा के लिये गया । वापिस लौटते समय रास्ते में उसके पैर से दब कर एक मेंढक मर गया । शिष्य ने उसे शुद्ध होने के लिये कहा किन्तु उसने शिष्य की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया । शाम को प्रतिक्रमण के समय शिष्य ने उसको फिर याद दिलाई | शिष्य के वचनों को सुन कर उसे क्रोध आगया । वह उसे मारने के लिये उठा, किन्तु अन्धेरे में एक स्तम्भ से सिर टकरा जाने से उसकी उसी समय मृत्यु हो गई । मरकर वह ज्योतिषी देवों में उत्पन्न हुआ । वहाँ से चव कर वह दृष्टिविष सर्प हुआ । उसे जाति स्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया । वह अपने पूर्वभव को देख कर पश्चात्ताप करने लगा। 'मेरी दृष्टि से किसी जीव की हिंसा न हो जाय' ऐसा सोच कर वह प्रायः अपने बिल में ही रहा करता था । बाहर बहुत कम निगलता था ।
एक समय किसी सर्प ने वहाँ के राजा के पुत्र को काट खाया। जिससे राजकुमार की मृत्यु हो गई । इस कारण राजा को सर्पों