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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला तथा लोकोत्तर हित (मोक्ष) को देने वाली है और वयोवृद्ध व्यक्ति को बहुत काल. तक संसार के अनुभव से प्राप्त होती है वह पारिणामिकी बुद्धि कहलाती है । इसके इक्कीस दृष्टान्त हैं। वे ये हैं-- अभए सिटि कुमारे, देवी उदिओदए हवइ राया। साहू य दिसेणे, धणदत्त सावग अमच्चे ॥ खमए अमञ्चपुत्ते, चाणक्के चेव थूल भद्दे य । पासिकसुदरिणंदे ,वहरे पारिणामिया बुद्धि । चलणाहण आमडे, मणी य सप्पे य खग्गि थूभिंदे । पारिणामियबुद्धीए एवमाई उदाहरणा ॥
भावार्थ (१) अभयकुमार (२) सेठ (३) कुमार (४) देवी (५) उदितोदय राजा (६) मुनि और नंदिषेण कुमार (७) धनदत्त (८) श्रावक (8)अमात्य (१०)श्रमण (११) मन्त्रीपुत्र (१) चाणक्य (१३) स्थूलभद्र (१४) नासिकपुर में मुदरीपति नन्द (१५) वज्रस्वामी (१६) चरणाहंत (१७) आमलक (१८) मणि । (१६) सर्प (२०) गेंडा (२१) स्तूप-ये इक्कीस पारिणामिकी बुद्धि के दृष्टान्त हैं। अब आगे क्रमशः प्रत्येक की कथा दी जाती है।
(१) अभयकुमार-मालव देश में उज्जयिनी नगरी में चण्डप्रद्योतन राजा राज्य करता था। एक समय उसने राजगृह के राजा श्रेणिक के पास एक दूत भेजा और कहलाया कि यदि राजा श्रेणिक अपनी और अपने राज्य की कुशलता चाहते हैं तो चंकचूड़ हार, सींचानक गंधहस्ती, अभयकुमार और चेलना रानो को मेरे यहाँ भेज दे । राजगृह में जाकर दूत ने राजा श्रेणिक को अपने राजा चण्डप्रद्योतन की आज्ञा कह सुनाई । उसे सुन कर राजा श्रेणिक बहुत क्रुद्ध हुआ। उसने दूत से कहा-तुम्हारे राजा