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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, छठा भाग
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मिथ्यादृष्टि को जीवादि पदार्थों के यथार्थ स्वरूप का ज्ञान नहीं होता है ।
(१६) देखने की शक्ति न होने से भी वस्तु नहीं मालूम होती जैसे अंधे पुरुष कतई नहीं देख सकते ।
(१७) विकार वश (इन्द्रियों में किसी प्रकार की कमी होने के कारण से ) भी पयार्थों का ज्ञान नहीं होता । वृद्धावस्था के कारण पुरुष को पदार्थों का पूर्वचत् स्पष्ट ज्ञान नहीं होता ।
(१८) क्रिया के अभाव से पदार्थ नहीं जाने जाते । जैसे पृथ्वी को खोदे बिना वृक्ष की जड़ों का ज्ञान नहीं होता । (१६) अधिगम र्थात् शास्त्र सुने विना उसके अर्थ का ज्ञान नहीं होता ।
२०) काल के व्यवधान से पदार्थों की उपलब्धि नहीं होती ।
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भगवान् ऋषभदेव एवं पद्मनाभ तीर्थंकर भूत एवं भविष्य काल
से व्यवहित हैं इसलिये वे प्रत्यक्ष ज्ञान से नहीं जाने जाते ।
२१) स्वभाव से ही इन्द्रियों के गोचर न होने के कारण भी पदार्थों का ज्ञान नहीं होता । जैसे श्राकाश पिशाच आदि स्वभाव से ही चतु इन्द्रिय के विषय नहीं हैं ।
(विशेषावश्यक भाष्य, गाथा १६८३ की टीका )
६१५ - पारिणामिकी बुद्धिके इक्कीस दृष्टान्तअणुमा हे उदित साहिया, वयांववागपरिणामा । हिर्यास्तेयमफलवई, बुद्धि परिणामियानाम ॥
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भावार्थ - अनुमान, हेतु और दृष्टान्त से विषय को सिद्ध करने बाली, अवस्था के परिपाक से पुष्ट तथा हित और मोक्ष रूप फल को देने वाली बुद्धि पारिणामिकी है पर्थात् जो स्वार्थानुमान, हेतु और दृष्टान्त से विषय को सिद्ध करती है, लोक हित