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- श्री. सेठिया जैन ग्रन्थमाना
पूर्ण करके रत्नप्रभा नरक में उत्पन्न होगो । मृगापुत्र की तरह मंसार परिभ्रमण करेगी । वनस्पतिकाय से निकल कर मयूर (मोर) रूप से उत्पन्न होगी । चिड़ीमार के हाथ से मारी जाकर सर्वतोभद्र नगर में एक सेठ के घर पुत्ररूप से उत्पन्न होगी । दीक्षा लेकर सौधर्म देवलोक में उत्पन्न होगी । वहाँ से चब कर महा वेदेह क्षेत्र में जन्म लेकर दीक्षा अङ्गीकार करेगी । बहुत वर्षों तक संयम का पालन का सकल कर्मों का क्षय कर सिद्ध, बुद्ध पावत् मुक्त होगी। उपरोक्त दस कथाएं दुःखविपाक की हैं। आगे दस कथाएं सुख विपाक की लिखी जाती हैं
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आज से लगभग २५०० वर्ष पहले मगध देश में राजगृह नामक नगर था । उस समय वह नगर अपनी रचना के लिए बहुत प्रसिद्ध था । वहाँ के निवासी धन धान्य और धर्म से सुखी थे। नगर के बाहर गुणशील नाम का एक बाग था। भगवान् महावीर के शिष्य सुधर्मा स्वामी, जो चौदह पूर्व के ज्ञाता और चार ज्ञान के धारक थे, अपने पाँच सौ शिष्यों सहित उस बाग में पधारे। सुधर्मा स्वामी के पधारने की खबर सुन कर राजगृह नगर की जनता उन्हें वन्दना नमस्कार करने गई । धर्मोपदेश श्रवण कर जनता वापिस चली गई। नगर निवासियों के लौट जाने पर सुधर्मा स्वामी के जेष्ठ शिष्य जम्नु स्वामी के मन में सुख के कारणों को जानने की इच्छा उत्पन्न हुई । अतः अपने गुरु सुधर्मा स्वामी की सेवा में उपस्थित होकर वन्दना नमस्कार कर वे उनके सन्मुख बैठ गये। दोनों हाथ बोड़ कर विनयपूर्वक सुधर्मा स्वामी से कहने लगे - हे भगवन् ! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी द्वारा कथित उन कारणों को, जिनका फल दुःख है, मैंने सुना । जिनका फल सुख है उन कारणों का वर्णन भगवान् ने किस प्रकार किया है ? मैं आपके द्वारा उन कारों को जानने का इच्छुक हूँ । अतः आप कृपाकर उनकारणों