________________
श्री जन सिद्धान्त बोल मंग्रह, छठा भाग
पाद उन ४६६ रानियों की धाय माताओं को आमन्त्रण देकर राजा ने कूटागार शाला में बुलवाया। उन धायमाताओं ने वस्त्र प्राभूषण पहने, स्वादिष्ट भोजन किया, मदिरा पी और नाच गान करने लगीं। अर्धरात्रि के समय राजा ने उस कूटागार शाला के दरवाजे बन्द करवाकर चारों तरफ आग लगवा दी। जिससे तड़प तड़प कर उनके प्राण निकल गए।
सिंहसेन राजा चौतीस सौ वर्ष का आयुष्य पूरा करके छठी नरक में उत्पन्न हुआ। वहाँ में निकल कर रोहिड़ नगर के दत्त सार्थवाह की स्त्री कृष्णश्री की कुक्षि से पुत्री रूप में उत्पन्न हुआ। उसका नाम देवदत्ता रक्खा गया। एक समय स्नान आदि कर वस्त्रालंकारों में सज्जित होकर वह देवदत्ता क्रीड़ा कर रही थी। वनक्रीड़ा के लिए जाते हुए वैश्रमण राजा ने उस कन्या को देखा। अपने नौकर पुरुषों को भेज कर उस कन्या के माता पिता को कहलवाया कि वैश्रमण राजा चाहता है कि तुम्हारी कन्या का विवाह मेरे राजकुमार पुष्पनन्दी के साथ हो तो यह घर जोड़ी श्रेष्ठ है। देवदत्ता के माता पिता ने हर्पित होकर इस बात को स्वीकार किया। __दच सार्थवाह अपने मित्र और सगे सम्बन्धियों को साथ लेकर हजार पुरुषों द्वारा उठाने योग्य पालकी में देवदत्ता कन्याको विठा कर राजमहल में लाया। हाथ जोड़ कर बिनय पूर्वक दत्त सार्थवाह ने अपनी कन्या देवदत्ता को राजा के सिपुर्द किया ।राजाको इससे बड़ा हर्ष हुआ।तत्क्षण पुष्पनन्दी राजकुमार को बुला कर देवदत्ता कन्या के साथ पाट पर विठाया। चाँदी और सोने के कलशों से स्नान करवा कर सुन्दर वस्त्र पहनाये और दोनों का विवाह संस्कार करवा दिया। कन्या के माता पिता एवं सगे सम्बन्धियों को भोजनादि करवा कर वस्त्र अलंकार श्राद से उनका सत्कार सल्मान कर विदा किये। राजकुमार पुष्पनन्दी देवदत्ता