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________________ ८ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला (१८) नवीन ज्ञान का निरन्तर अभ्यास करने से जीव तीर्थंकर नाम कर्म बाँधता है। (१६) श्रुत की भक्ति बहुमान करने से जीव तीर्थंकर नाम कर्म बाँधता है । (२०) देशना द्वारा प्रवचन की प्रभावना करने से जीव तीर्थंकर नाम कर्मांधता है । इन बीस बोलों की भाव पूर्वक आराधना करने से जीव तीर्थंकर नाम कर्म बाँधता है । श्रावश्यक सूत्र निर्युक्ति गाथा १७६-१८१ पृ ११८) ( ज्ञातासूत्र श्र० ८ ) ( प्रवचन सारोद्वार द्वार १० गा. ३१०-३१६ । ६०३ - विहरमान बीस द्वीप के विदेह क्षेत्र के मध्य भाग में मेरु पर्वत है । पर्वत के पूर्व में सीता और पश्चिम में सीतोदा महानदी है। दोनों नदियों उत्तर और दक्षिण में आठ आठ विजय हैं। इस प्रकार जम्बू द्वीप के विदेह क्षेत्र में आठ आठ की पंक्ति में बत्तीस विजय हैं। इन विजयों में जघन्य ४ तीर्थङ्कर रहते हैं अर्थात्प्रत्येक आठ विजयों की पंक्ति में कम से कम एक तीर्थङ्कर सदा रहता है । प्रत्येक विजय में एक तीर्थङ्कर के हिसाब से उत्कृष्ट बत्तीस तीर्थङ्कर रहते हैं । ( स्थानाग ८ सूत्र ६३७ ) धातकी खंड और अर्द्धपुष्कर द्वीप के चारों विदेह क्षेत्र में भी ऊपर लिखे अनुसार ही बत्तीस बत्तीस विजय हैं । प्रत्येक विदेह क्षेत्र में ऊपर लिखे अनुसार जघन्य चार और उत्कृष्ट बत्तीस तीर्थ - र सदा रहते हैं। कुल विदेह क्षेत्र पांच हैं और उनमें विजय १६० हैं। सभी विजयों में जघन्य वीस और उत्कृष्ट १६० तीर्थङ्कर रहते हैं । वर्तमान काल में पांचों विदेह क्षेत्र में बीस तीर्थङ्कर विद्यमान हैं। वर्तमान समय में विचरने के कारण उन्हें विहरमान कहा जाता है । विहरमानों के नाम ये हैं
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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