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श्री सैठिया जैन अन्यमाला गण (समूह) को धारण करने वाले तथा प्रवचन को पहले पहल सूत्र रूप में गूथने वाले महापुरुष गणधर कहलाते हैं। ये तीर्थङ्करों के प्रधान शिष्य तथा गणों के नायक होते हैं। गणधर लब्धि के प्रभाव से गणधर पद की प्राप्ति होती है।
(१४) पूर्वधर लब्धि-तीर्थ की आदि करते समय तीर्थङ्कर भगवान् पहले पहल गणधरों को सभी सूत्रों के आधार रूप पूर्वो का उपदेश देते हैं । इसलिये उन्हें पूर्व कहा जाता है। पूर्व चौदह हैं । दशं से लेकर चौदह पूर्वो के धारक पूर्वधर कहे जाते हैं। जिस के प्रभाव से उक्त पूर्वो का ज्ञान प्राप्त होता है वह पूर्वधर लब्धि है।
(१५) अहल्लब्धि-अशोकवृक्ष, देवकृत अचित्त पुष्पवृष्टि, दिव्य ध्वनि, चँवर, सिंहासन, भामण्डल, देवदुन्दुभि और छत्र इन आठ महाप्राविहार्यों से युक्त केवली अर्हन्त (तीर्थङ्कर) कहलाते हैं। जिस लब्धि के प्रभाव से अर्हन्त (तीर्थङ्कर) पदवी प्राप्त हो वह अहल्लब्धि कहलाती है।
(१६) चक्रवर्ती लब्धि-चौदह रत्नों के धारक और छः खण्ड पृथ्वी के स्वामी चक्रवर्ती कहलाते हैं । जिस लब्धि के प्रभाव से चक्रवर्ती पद प्राप्त होता है, वह चक्रवर्ती लब्धि कहलाती है।
(१७) बलदेव लब्धि-वासुदेव के बड़े भाई बलदेव कहलाते हैं । जिस के प्रभाव से इस पद की प्राप्ति हो वह वलदेव लब्धि है। __ (१८) वासुदेव लब्धि-अर्द्ध भरत (भरतक्षेत्र के तीन खण्ड)
और सात रत्नों के स्वामी वासुदेव कहलाते हैं । इस पद की प्राप्ति होना वासुदेव लब्धि है। __ अरिहन्त, चक्रवर्ती और वासुदेव ये सभी उत्तम एवं श्लाघ्य पुरुष हैं । इनका अतिशय बतलाते हुए ग्रन्थकार कहते हैं
सोलस रायसहस्सा सव्व बलेणं तु संकलनिबद्धं । अंछति वासुदेवं अगडवडम्मि ठियं संतं ॥