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भी सेठिया जैन ग्रन्थमाला
(१०) चारण लब्धि-जिस लब्धि से आकाश में जाने आने की विशिष्ट शक्ति प्राप्त होती है वह चारण लब्धि है । जंघाचारण
और विद्याचारण के भेद से यह लन्धि दो प्रकार की है। बंधाचारण लब्धि विशिष्ट चारित्र और तप के प्रभाव स प्राप्त होती है और विद्याचारण लब्धि विद्या के वश होती है।
जंघाचारण लब्धि बाला रुचकवर द्वीप तक जा सकता है । वह एक ही उत्पात (उड़ान) से रुचकवर द्वीप तक पहुँच जाता है किन्तु आते समय दो उत्पात करके आता है पहली उड़ान से नन्दीश्वर द्वीप में आता है और दूसरी से अपने स्थान पर आ जाता है। इसी प्रकार वह ऊपर भी जा सकता है. । वह एक ही उड़ान में सुमेरु पर्वत के शिखर पर रहे हुए पाण्डुक वन में पहुंच जाता है
और लौटते समय दो उड़ान करता है। पहली उड़ान से वह नन्दन वन में आता है और दूसरी से अपने स्थान पर आ जाता है।
विद्याचारण लब्धि वाला नन्दीश्वर द्वीप तक उड़ कर जा सकता है । जाते समय वह पहली उड़ान में मानुषोत्तर पर्वत पर पहुँचता है और दूसरी उड़ान में नन्दीश्वर द्वीप पहुंच जाता है। लौटते समय वह एक ही उड़ान में अपने स्थान पर आ जाता है किन्तु बीच में विश्राम नहीं लेता । इसी प्रकार ऊपर जाते समय वह पहली उड़ान से नन्दन वन में पहुंचता है और दूसरी से पाण्डुक वन । आते समय वह एक ही उड़ान से अपने स्थान पर आ जाता है ।
जंघाचारण लब्धि चारित्र और तप के प्रभाव से होती है । इस लब्धि का प्रयोग करते हुए मुनि के उत्सुकता होने से प्रमाद का संभव है और इसलिये यह लब्धि शक्ति की अपेक्षा हीन हो जाती है। यही कारण है कि उसके लिये आते समय दो उत्पात करना कहा है। विद्याचारण लब्धि विद्या के वश होती है, चूंकि विद्या का परिशीलन होने से वह अधिक स्पष्ट होती है इसलिये यह लब्धि