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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, छठा भाग
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करने के कारण उस वन्ध्या स्त्री को निरादरपूर्वक वहाँ से निकाल दिया गया । यह महारानी की औत्पत्तिकी बुद्धि थी। "
(२६) इच्छा महं (जो इच्छा हो सो मुझे देना)-किसी शहर में एक सेठ रहता था। वह बहुत धनी था । उसने अपना बहुत सा रुपया व्याज पर कर्ज दे रखा था। अकस्मात् सेठ का देहान्त हो गया। सेठानी लोगों से रुपया वसूल नहीं कर सकती थी । इसलिये उसने अपने पति के मित्र से रुपये वसूल करने के लिये कहा । उसने कहा-यदि मेरा हिस्सा रखो तो मैं कोशिश करूँगा । सेठानी ने कहा तुम रुपये वसूल करो फिर तुम्हारी इच्छा हो सो मुझे देना । सेठानी की बात सुन कर वह प्रसन्न हो गया । उसने बमूली का काम प्रारम्भ किया और थोड़े ही समय में उसने सेट के सभी रुपये वसूल कर लिये । जब सेठानी ने रुपये माँगे तो वह थोड़ा सा हिस्सा सेठानी को देने लगा। सेठानी इस पर राजी न हुई। उसने राजदरबार में फरियाद की । न्यायाधीश ने रुपये चमूल करने वाले व्यक्ति को बुलाया और पूछा-तुम दोनों में क्या शर्त हुई थी ? उसने बतलाया, सेठानी ने मुझ से कहा था कि तुम मेरे रुपये वसूल करो । फिर तुम्हारी इच्छा हो सो मुझे देना । उसकी बात सुन कर न्यायाधीश ने चमूल किया हुआ सारा द्रव्य वहाँ मॅगवाया और उसके दो भाग करवाये-एक बड़ा और दूसरा छोटा । फिर रूपये वसूल करने वाले से पूछा- कौन सा भाग लेने की तुम्हारी इच्छा है ? उसने कहा-मेरी इच्छा यह बड़ा भाग लेने की है। तब न्यायाधीश ने कहा-तुम्हारी शर्त के अनुसार यह बड़ा भाग सेठानी को दिया जायगा और छोटा तुम्हें । सेठानी ने तुम्हें यही कहा था कि तुम्हारी इच्छा हो सो मुझे देना । तुम्हारी इच्छा बड़े भाग की है इसलिये यह बड़ा भाग सेठानी को मिलेगा । न्यायाधीश की यह औत्पत्तिकी बुद्धि थी।