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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, छठा भाग
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दिन वे कहीं जा रहे थे। रास्ते में उन्होंने एक दम्पति ( पति पत्नी) को जाते हुए देखा । त्री के अद्भुत रूप लावण्य को देख कर पुण्डरीक उस पर मुग्ध हो गया । उसने मूलदेव से कहा- मित्र ! यदि इस स्त्री से मुझे मिला दो तो मैं जीवित रह सकूंगा अन्यथा मर जाऊँगा । मूलदेव ने कहा- मित्र ! घबराओ मत । मैं जरूर तुम्हें इससे मिला दूँगा | इसके बाद वे दोनों उस दम्पति से नजर चचाते हुए शीघ्र ही बहुत दूर निकल गये । आगे जाकर मूलदेव ने पुण्डरीक को वननिकुन्ज में निठा दिया और स्वयं रास्ते पर आकर खड़ा हो गया । जन प्रति पत्नी वहाँ पहुँचे तो मूल देव ने पति से कहा - महाशय ! इस चननिकुञ्ज में मेरी स्त्री प्रसव वेदना से कष्ट पा रही है । थोडी देर के लिये आप अपनी स्त्री को वहाँ भेज दें तो बड़ी कृपा होगी। पति ने पत्नी को वहाँ जाने के लिये कह दिया। स्त्री बड़ी चतुर थी । वह गई और वन निकुञ्ज में पुरुष को बैठा हुआ देख कर क्षण मात्र में लौट आई। श्राकर उसने मूलदेव से हँसते हुए कहा - यापकी स्त्री ने सुन्दर बालक को जन्म दिया है । दोनों की यानी मूलदेव और उस स्त्री की औत्पत्तिकी बुद्धि थी ।
(१६) पड़ ( पति का दृष्टान्त) - किसी गाँव में दो भाई रहते थे । उन दोनों के एक ही स्त्री थी । वह स्त्री दोनों से प्रेम करती थी । लोगों को आर्य होता था कि यह स्त्री अपने दोनों पतियों से एकसा प्रेम कैसे करती है ? यह बात राजा के कानों तक भी पहुँची । राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ । उसने मन्त्री से इसका जिक्र किया । मन्त्री ने कहा- देव ! ऐसा कदापि नहीं हो सकता। दोनों भाइयों में से छोटे या बड़े किसी एक पर उसका अवश्य विशेष प्रेम होगा । राजा ने कहा- यह कैसे मालूम किया जाय १ मन्त्री ने कहा- देव ! मैं ऐसा प्रयत्न करूँगा कि शीघ्र इसका पता लग जायगा ।, : एक दिन मन्त्री ने उस स्त्री के पास यह आदेश भेजा कि कल प्रातः