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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, छठा भाग २५५ प्रकार आप भी दूसरों का सर्वस्व हर लेते हैं। चौथे विच्छ्र से, क्योंकि जिस प्रकार बिच्छू निर्दयता पूर्वक डंक मार कर दूसरों को पीड़ा पहुंचाता है। उसी प्रकार सुखपूर्वक निद्रा में सोये हुए मुझ बालक को भी आपने छड़ी के अग्रभाग से जगा कर कप्ट दिया । पाँचवें अपने पिता से, क्योंकि अपने पिता के समान ही आप भी प्रजा का न्यायपूर्वक पालन कर रहे हैं।
रोहक की उपरोक्त बात सुन कर राजा विचार में पड़ गया । आखिर शौचादि से निवृत्त हो राजा अपनी माता के पास गया। प्रणाम करने के पश्चात् गजा ने एकान्त में माता से कहा--मॉ! मेरे कितने पिता हैं ? माता ने लज्जित होकर कहा--पुत्र ! तुम यह क्या प्रश्न कर रहे हो ? इस पर राजा ने रोहक की कही हुई सारी बात कह सुनाई और कहा-माँ! रोहक का कथन मिथ्या नहीं हो सकता । इसलिये तुम मुझे सच सच कह दो । माता ने कहापुत्र ! यदि किसी को देखने आदि से मानसिक भाव का विकृत हो जाना भी तेरे संस्कार का कारण हो सकता है तब तो रोहक का कथन ठीक ही है । जा तू गर्भवास में था उस समय में वैश्रवण देव की पूजा के लिये गई थी । उस की सुन्दर मूर्ति को देख कर तथा वापिस लौटते समय रास्ते में धोत्री और चाण्डाल युवक को देख कर मेरी भावना विकृत हो गई थी। घर आने पर आटे के विच्छू को मैंने हाथ पर रखा और उसका स्पर्श पाकर भी मेरी भावना विकृत हो गई थी।वैसे तोजगत्प्रसिद्ध पिता ही तुम्हारे वास्तविक जनक हैं । यह सुन कर राजा को रोहक की बुद्धि पर बड़ा
आश्चर्य हुआ | माता को प्रणाम कर वह अपने महल लौट आया उसने रोहक को प्रधान मन्त्री के पद पर नियुक्त किया। ___ उपरोक्त चौदह कथाएँ रोहक की औत्पत्तिकी बुद्धि की हैं ये सब औत्पत्तिकी बुद्धि के प्रथम उदाहरण के अन्तर्गत हैं