________________
२५२ . श्री सेठिया जैन-ग्रन्थमाला विषय में भी रोहक से पूछा। रोहक ने कहा-चाँवलों को पहले पानी में खूब अच्छी तरह भिगो कर गर्म किये हुए दूध में डाल दो। फिर सूर्य की किरणों से खूब तपे हुए कोयलों या पत्थरों पर उस चाँवल की थाली को रख दो। इससे खीर पक कर तैयार हो जायगी । लोगों ने रोहक के कथनानुसार कार्य किया । खीर पक कर तैयार हो गई। उसे ले जाकर उन लोगों ने राजा की सेवा में उपस्थित की। राजा ने पूछा-विना अग्नि खीर कैसे प्रकाई ? लोगों ने सारी हकीकत कही । राजा ने पूछा-तुम लोगों को यह तरकीब किसने बताई ? लोगों ने कहा रोहक ने हमें यह तरकीब बताई । रोहक की बुद्धि का यह दसवाँ उदाहरण हुआ। __ अजा-रोहक ने अपनी तीत्र (ौत्पत्तिकी)बुद्धि से राजा के सारे
आदेशों को पूरा कर दिया। इससे राजा बहुत खुश हुआ । राजपुरुषों को भेज कर राजा ने रोहक को अपने पास बुलाया । साथ ही यह आदेश दिया कि रोहक न शुक्लपक्ष में आवे न कृष्ण पक्ष में, न रात्रि में आवे न दिन में, न धूप में आवे न छाया में, न आकाश से आवे न पैदल चल कर, न मार्ग से आवे न उन्मार्ग से, न स्नान करके आवे न विना स्नान किये, किन्तु आवे जरूर ।
राजा के उपरोक्त आदेश को सुन कर रोहक ने कण्ठ तक स्नान किया और अमावस्या और प्रतिपदा के संयोग में संध्या के समय सिर पर चालनी का छत्र धारण करके, मेंढे पर बैठ कर गाड़ी के पहिये के बीच के मार्ग से राजा के पास पहुँचा । राजा, देवता और गुरु के दर्शन खाली हाथ न करना चाहिये, इस लोकोक्ति का विचार कर रोहक ने एक मिट्टी का ढेला हाथ में ले लिया । राजा के पास जाकर उसने विनय पूर्वक राजा को प्रणाम किया
और उसके सामने मिट्टी का ढेला रख दिया । राजा ने रोहक से पूछा-यह क्या है ? रोहक ने कहा-देव ! आप पृथ्वीपति हैं,