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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, छठा भाग - २४३ (२४) शिक्षा (२५) अर्थशास्त्र (२६) इच्छा महं (२७) शतसहस्र ।
(१) भरतशिला-इसके अन्तर्गत रोहक की बुद्धि के चौदह दृष्टान्त हैं वे इस प्रकार हैं
भरह सिल मिढ कुक्कुड़ तिल घालुन हत्थी अगड़ वणसंडे । पायस अइया पत्ते, खाडहिला पच पिरो अ॥६४॥
अर्थ-(१) भरत (२) शिला (३) मेंढा (8) कुकुंट (५) तिल (६) बालू (७) हाथी (6) कुत्रा (६) वनखण्ड (१०) खीर (११) अजा (१२) पत्र (१३) गिलहरी (१४) पाँच पिता।
(१) भरत-उज्जयिनी नगरी के पास नटों का एक गांव था। उसमें भरत नाम का नट रहता था। वह अपनी पत्नी के साथ आनन्द पूर्वक समय व्यतीत करता था। कुछ समय पश्चात् उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसका नाम रोहक रक्खा गया। जब वह छोटा ही था कि उसकी माता का देहान्त होगया । पुत्र की उम्र छोटी देख कर उसके लालन पालन तथा अपनी सेवा के लिए भरत ने दूसरी शादी कर ली। सौतेली माता का व्यवहार रोहक के साथ प्रेम पूर्ण नहीं था। उसके कटोर व्यवहार से रोहक दुःखी हो गया। एक दिन उसने अपनी माँ से कहा-मॉ! तू मेरे साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार नहीं करती है, यह अच्छा नहीं है। माँ ने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया। उसने उपेक्षापूर्वक कहा-रे रोहक ! यदि में अच्छा व्यवहार नहीं करूं तो तू मेरा क्या कर लेगा ? रोहक ने कहा- मॉ ! मैं ऐसा कार्य करूँगा जिससे तुझे मेरे पैरों पर गिरना पड़ेगा। मॉ ने कहा-रे रोहक ! तू अभी बच्चा है । छोटे मुँह बड़ी बात बनाता है । अच्छा ! मैं देखती हूं तू मेरा क्या कर लेगा ? यह कह कर वह सदा की भांति अपने कार्य में लग गई।
रोहक अपनी बात को पूरी करने का अवसर देखने लगा। एक दिन रात्रि के समय वह अपने पिता के साथ वाइर सोया हुआ