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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
हरणता, काया समाहरणता, ज्ञान संपन्नता, दर्शन संपन्नता, चारित्रसंपन्नता, वेदनातिसहनता, मारणान्तिकातिसहनता । (हारिभद्रीयावश्यक प्रतिक्रमणाध्ययन पृ० ६५२ ) ( समवायाग २७ ) ( उत्तराध्ययन ० ३१ गा० १८)
६४६ --सूयगडांग सूत्र के चौदहवें अध्य● की सत्ताईस गाथाएं
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ग्रन्थ (परिग्रह) दो प्रकार का है - बाह्य और आभ्यन्तर । दोनों प्रकार के परिग्रह को छोड़ने से ही पुरुष समाधि को प्राप्त कर सकता है । यह बात सूयगडांग सूत्र के चौदहवें अध्ययन में वर्णन की गई है । उसमें सत्ताईस गाथाएं हैं। उनका भावार्थ इस प्रकार है:(१) संसार की असारता को जान कर मोक्षाभिलाषी पुरुष को चाहिए कि परिग्रह का त्याग कर गुरु के पास दीक्षा लेकर सम्यक् प्रकार से शिक्षा प्राप्त करे और ब्रह्मचर्य का पालन करे । गुरु की आज्ञा का मले प्रकार से पालन करता हुआ विनय सीखे और संयम पालन में किसी प्रकार प्रमाद न करे ।
(२) जिस पक्षी के बच्चे के पूरे पंख नहीं ये हैं वह यदि उड़ कर अपने घोंसले से दूर जाने का प्रयत्न करता है तो वह उड़ने में समर्थ नहीं होता अपने कोमल पंखों द्वारा फड़ फड़ करता हुआ वह ढंक आदि मांसाहारी पक्षियों द्वारा मार दिया जाता है ।
(३) जिस प्रकार अपने घोंसले से बाहर निकले हुए पङ्खरहित पक्षी के बच्चे को हिंसक पक्षी मार देते हैं उसी प्रकार गच्छ से निकल कर अकले विचरते हुए, सूत्र के अर्थ में निपुण तथा धर्म तत्व को अच्छी तरह न जानने वाले नव दीक्षित शिष्ट को पाखण्डी लोग बहका कर धर्म भ्रष्ट कर देते हैं ।
(४) जो पुरुष गुरुकुल (गुरु की सेवा) में निवास नहीं करता । वह कर्मों का नाश नहीं कर सकता। ऐसा जान कर मोचाभिलाषी