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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला तीर्थंकर क्रमशः भरत और सगर चक्रवर्ती सहित हुए । इनके बाद तीसरे संभवनाथ स्वामी से लेकर दसवें शीतलनाथस्वामी तक आठ तीर्थकर हुए । तदनन्तर श्री श्रेयांसनाथ स्वामी, वासुपूज्य स्वामी, चिमलनाथ स्वामी, अनन्तनाथ स्वामी औरधर्मनाथ स्वामी, ये पांच तीर्थंकर वासुदेव सहित हुए अर्थात् इनके समय में क्रमशः त्रिपृष्ट, द्विपृष्ट, स्वयंभू, पुरुषोत्तम और पुरुषसिंह ये पांच वासुदेव हुए। धर्मनाथ स्वामी के बाद मघवा और सनत्कुमार चक्रवर्ती हुए । बाद में पांचवें शान्तिनाथ, छठे कुन्थुनाथ और सातवें अरनाथ चक्रवर्ती हुए और ये ही तीनों क्रमशः सोलहवें, सत्रहवें और अठाहरवें तीर्थंकर हुए। फिर क्रमशाठे पुरुषपुण्डरीक वासुदेव, आठवें सुभूम चक्रवर्ती और सातवें दत्त वासुदेव हुए। बाद में उन्नीसवें श्री मल्लिनाथ स्वामी तीर्थंकर हुए । इनके बाद बीसवें तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रत स्वामी और नववें महापद्म चक्रवर्ती एक साथ हुए। बीसवें तीर्थंकर के बाद आठवें लक्ष्मण वासुदेव हुए । इनके पीछे इक्कीसवें नेमिनाथ तीर्थंकर हुए एवं इन्हीं के समकालीन दसवें हरिषेण चक्रवर्ती हुए । हरिषेण के बाद ग्यारहवें जय चक्रवर्ती हुए । इसके बाद वाईसवें तीर्थंकर अरिष्टनेमि और नववें कृष्ण वासुदेव एकसाथ हुए। बाद में बारहवें ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती हुए । ब्रह्मदत्त के बाद तेईसवें पार्श्वनाथस्वामी औरचौबीसवें महावीरस्वामी हुए। (सप्ततिशत१७०द्वार)
नोट-सप्ततिशतस्थान प्रकरण में तीर्थंकर सम्बन्धी १७० बोल हैं। (समवायाग १५७) (हरिभद्रीयावश्यक गा० २०९-३६०) (श्रावश्यक मलयगिरि गा० २३१ से ३८६) (सप्ततिशतस्थान प्रकरण)(प्रवचन सासेद्धार द्वार ७ से ४५) ६३०-भरतक्षेत्र के अागामी २४ तीर्थङ्कर
आगामी उत्सर्पिणी में जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में चौवीस तीर्थंकर होंगे। उनके नाम नीचे लिखे अनुसार हैं