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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
महावीर स्वामी ने तीर्थङ्कर गोत्र बांधने के बीस बोलों की आराधना की थी और शेष तीर्थङ्करों ने एक, दो, तीन या सभी बोलों की आराधना की थी । तीर्थंकर गोत्र बांधने के बीस बोल इसी भाग में बोल नं ० ६०२ में दिये गये हैं । ( सप्ततिशत द्वार ११ ) तीर्थंकरों के पूर्वभव का श्रुतज्ञान
पढमो दुबालमंगी सेसा इकार संग सुत्तधरा ॥ भावार्थ - प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव स्वामी पूर्वभव में द्वादशांग सूत्रधारी और तेईस तीर्थंकर ग्यारह अंग सूत्रधारी हुए ।
( सप्ततिशत द्वार १० )
तीर्थंकरों के जन्म एवं मोक्ष के आरे संखिज्ज कालरूवे तइयऽरयंते उसह जम्मो ॥ अजियस्स चउत्थारयमज्मे पच्छद्धे संभवाई । तस्सं राईणं जिणाय जम्मो तहा मुक्खो || भावार्थ - संख्यात्काल रूप तीसरे आरे के अन्त में भगवान् ऋषभदेव स्वामी का जन्म और मोक्ष हुआ चौथे आरे के मध्य में श्री अजितनाथ स्वामी का जन्म और मोक्ष हुआ । चौथे आरे के पिछले आधे भाग में श्रीसंभवनाथ स्वामी से लेकर श्री कुंथुनाथ स्वामी और मुक्त हुए। चौथे चारे के अंतिम भाग में श्री अरनाथस्वामी से श्रीवीर स्वामी तक सात तीर्थंकरों का जन्म और मोक्ष हुआ !
( सप्ततिशत २५. द्वार)
तीर्थोच्छेद काल
पुरिमंऽतिम तरेसु, तित्थस्स नत्थि वुच्छेश्रो | मल्लिएसु सत्तसु, एत्तियकालं तु बुच्छेओ ॥ ४३२ ॥ चउभागो चउभागो तिरिा य चउभाग पलिय चउभागो । तिरारोव य चउभागा चउत्थभागो य चउभागो ॥ ४३३ ॥ भावार्थ - चौवीस तीर्थंकरों के तेईस अन्तर हैं। श्री ऋषभदेवस्वामी से लेकर श्री सुविधिनाथ स्वामी पर्यन्त नौ तीर्थंकरों के आदिम आठ