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श्री जैन सिद्धन्त बोल संग्रह, छठा भाग
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1- (३) प्रश्न- सिद्ध शिला और अलोक के बीच कितना अन्तर है ? .... उत्तर - भगवती सूत्र चौदहवें शतक आठवें उद्देशे में बतलाया है कि सिंद्ध शिला और अलोक के बीच देशोन' (कुछ कम) एक योजन का अन्तर है । टीकाकार ने व्याख्या करते हुए कहा है कि यहाँ जो योजन कहा गया है वह उत्सेधांगुल के माप से 'जानना चाहिये | क्योंकि योजन के ऊपर के कोश के छठे हिस्से मैं ३३३ ३ धनुष प्रमाण सिद्धों की अवगाहना कहीं गई है, इसका 'सामंजस्य उत्सेधांगुल के माप का योजन मानने से ही होता है। आवश्यक सूत्र में एक योजन का जो अन्तर बतलाया है उसमें थोड़ी सी न्यूनता की विवक्षा नहीं की गई है । वैसे दोनों में कोई विरोध नहीं है । ( भगवती सूत्रे शतक १४ उद्देशा ८ टीका सू. ५२७ ) = ( ४ ) प्रश्न- जहाँ तीर्थङ्कर भगवान् विचरते हैं वहाँ उनके अतिशय 'से पच्चीस योजन तक: रोग, चैर, मारी आदि शान्त हो जाते हैं तो -पुरिमतालनगर में महाबल राजा ने विविध प्रकार की व्यथाओं से दुःख- पहुंचा करं अभंग्नसेन का कैसे वध किया
- उत्तर- विपाक संत्र के तीसरे अध्ययन की टीका में मग्नसेन, चोर के विषय में टीकाकार ने यही शंका उठाकर उसका समाधान दिया है । वह इस प्रकार है । शंका- जहाँ ता • विचरते हैं वहाँ उनके अतिशय से पच्चीस. योजन एवं मतान्तर से बारह योजन तक- वैर आदि अनर्थ नहीं होते हैं । कहा भी है-'पुव्युप्पण्णा रोगाः पसमति य ईइ वेर मारी । अबुट्टियपावुद्धि, न होइ दुब्भिक्ख डमरं च ।।
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भावार्थ - (तीर्थङ्कर के अतिशय, से) पूर्वोत्पन्न रोग, ईति, 'वर और मारी शांत हो जाते हैं तथा अतिवृष्टि, अनावृष्टि, दुर्मिच और अन्य उपद्रव नहीं होते । फिर भगवान् महावीर के पुरिमंताल
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