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१३४ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमोला..: mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmiminin
अं अरिहंत का एवं दूसरा अं अशरीर अर्थात् सिद्ध का पहला अक्षर है । आप्राचार्य का एवं उ उपाध्यायःका प्रथम अक्षर है। म् मुनि अर्थात् साधु का पहला अक्षर है। इस प्रकार उक्त पांचों अक्षरों के संयोग से बना हुआ.यह अकार. शब्द पंच परमेष्ठी का द्योतक है.. “अरिहंता असरीराआयरिय उवझाय मुणिणो यः। पढमवखरः णिप्पएणो ॐकारो. पंचपरमेट्ठी ।।
. (द्रव्य संग्रह.) , (२). प्रश्न-संघ तीर्थ है या तीर्थङ्कर तीर्थ है: १. १० ...
उत्तर-भगवंती सूत्र के २० वे शतकं आठवें उद्देशे सू०६८१में यही प्रश्न-गौतम स्वामी ने भगवान् महावीर से पूछा है । यह इस प्रकार है-तित्थं भते 1: तित्य तित्थगरे तित्थं-१ गोयमा. अरहा ताच नियम: तित्थकरे, तित्थं पुण: चाउवएणाइएणे. समण संघो तंजहा-समणा, समणीओ, सावया राषियाश्रो: य )... "... " :, भावार्थ-भगवन्! तीर्थ (संघ) तीर्थ है यातीर्थङ्करतीर्थ है ?उत्तरहे गौतम! अरिहन्त-तीर्थङ्कर नियम पूर्वक तीर्थ के प्रवर्तक हैं (किन्तु तीर्थ नहीं हैं)। चार वर्ण वाला श्रमण प्रधान संघ ही तीर्थ है जैसे कि साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविकां । साधु साध्वी श्रावक श्राविका रूप उक्त संघ-ज्ञान दर्शन चारित्र का.प्रांधार है, आत्मी को अज्ञान और मिथ्यात्व से तिरा देता है एवं संसार के पार पहुँचाता है इसीलिये इसे तीर्थ कहा है। यह भावतीर्थ है। द्रव्यतीर्थ का आश्रय लेने से तृषा की-शान्ति होती है, दाह का उपशम होता है, एवं मल का नाश होता है। भावंतीर्थ की शरण लेने 'वाले को भी तृष्णां का नाश, क्रोधामि की शान्ति एवं कर्म मल का नाश-इन तीन गुणों की प्राप्ति होती है।
(विशेषावश्यक भाष्य गाथा १०३४ स १०४७)